Book Title: Karmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
View full book text ________________ कर्मस्तवभाष्यम् सुहुमै दुरुत्तरसर्य, अडयालमिगुत्तरं च पंचासी। 'पंचासी य अजोगे, पयडीणं संतवोच्छेओ // 24 // 24 // तित्थयरेण विहींणं, सीयालसयं तु संतए होइ। सौसायणमि उ गुणे, सम्मामिच्छे यपयडीणं // 25 // 14 // अणतिरिनारयरहियं बायाल सयं वियाण संतंमि / / उवसामगस्सऽपुब्बानियट्टिसुहुमोवसं तस्स // 26 // 16 // सव्वेसु वि आहारं, सासणमिस्सेयरे न वा तित्थं / / उभये संति न मिच्छे, तित्थयरे अंतरमुहुत्तं // 27 // जा सुहमसंपराओ,' उइन्नस ताई ताई सव्वाइं / सत्तठुवसंते खीण सत्त सेसेसु चत्तारि / / 28 / / संते अडयालसयं, खवगं तु पंडुच्च होइ पणयालं / / आउतिगं नत्थि तहिं, सत्तगखीणमि अडतीसं // 26 // 13 // .मिच्छत्तअविरई तह, कसायजोगा य हेयवो भणिया / ते पंच दुवालस पन्नवीस पन्नरस भेइल्ला // 30 // पणपन्नपन्नतियछहिय चत्तगुणचत्तछचउद्गवीसा / ' सोलस दस नव नव सत्त हेउणो न उ अजोगंमि // 31 // अहिनवगहणं बंधों, उदओ हु विवागवेयणं तस्स / अविवागेणणुभवणं, अणुदयपत्तस्सुईरणयां // 32 // 1 // 1 "नायव्वा अणुमागे पंयडीणं संतवोच्छेओ।।२४।।" इत्यपि / 2 “य” इति / एतद्भाष्ये, या गाथा नास्ति सा चैतदनन्तरमेषा-"पणयालं अडतीसं, अविरयसम्माओ जाव अपमत्तो। अप्पुव्वे अडतीसं, नवरं खवगंमि बोधव्वं // 15 // " इति / .3 सयं तु संतए जाण" इति / ४०तेसु' इति / 5 "चत्तिगुण." इत्यपि। * ॥समाप्तमिदं कमस्तवभाष्यम् //
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