Book Title: Karmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti

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Page 665
________________ सप्ततिकाभाष्यम् जत्थ य अट्ठ य भंगा तत्थ य थिरसुभर जसेहिँ३ सियरेहिँ 3 / उठिंति संकरहिया आयवउज्जोय 'दुगि दुगुणा // 62 / / बंधस्थानानि विवरयन्नाह गाथाष्टादशकेननियगइदुगनियजाई उरलं हुंडं च थावरं अथिरं / अणएज्ज असुभद्भग अपज्जनवधुवय अजसं. च // 63 / / पत्ते यदुगेगयरं सुहुमदुगेगयरिगिदितेवीसा / "एगिदियाइतिरिनर बंहिँ मिच्छेण चउभंगा // 64 // सोसासपराधाए . खित्ते पणुवीसिगिदिपज्जस्स / पत्तेयसुहुमसुभथिर जसजुयलिहिँ वीस भंगाओ // 65 / / . विरुद्धपरित्यागेन ज्ञेयाः। नेरइयवज्ज मिच्छो बंधइ एसा वि होइ छब्बीसा / उज्जोयआयवाणं एगयरे भंगसोलसगं // 66 // साहारणसुहमेहिं उज्जोयजसायवा न बझति / अपजत्तेणं च तहा पसत्थपरियत्तमाणीओ // 67 // 5 एगिदिवज्जतिरिमणअपज्ज पणवीस एत्थ पणभंगा / / तसबायरउरलदुगं सेवट्ट तह य पत्तेयं // 68 // , 'तेकीससेससहियं नरतिरिएगिदियाइ बंधंति / नारयअडवीसेवं बंधहि तिरिमणुयपंचिंदी // 69 // ___ सा एवंनियगइदुगनियजाईबायरपरघाय पजपत्तेयं / नवधुव सासु तसं चिय वेउव्विदुगं च हुडं च // 7 // अपसत्थपिंडसहिया संघयणं 'मोत्तु मिच्छ बंधेइ / / भंग विणा मिच्छाई पुव्वंता सा वि सुरजोग्गा // 71 // नवरं भंगा अट्ठ उ समचउरंसं पसत्थपिंडं च / सा तित्थि इगुणतीसा बंधहिँ अजयाइणो अहवा // 72 // १"दुवि" इत्यपि ह० प्रतौ / 2 एगिदिया य तिरि०" इत्यपि / ह० प्रतौ 3 "बायरपत्तेयथिरासुमजसि सियरेहिँ वीसांसा // 65 // " इत्यपि मुद्रितप्रतौ पाठान्तरम् / 4 बंधति" इति मु० प्रतौ / 5 "अपि-. जत्तविगलतिरिमणुयजुग्गपणवीसइत्थ पण भंगा' इति मुद्रितप्रतौ पाठान्तरम् / 6 “सेसतेवीस०" इति मुद्रितप्रतौ पाठोऽस्ति पर तु म छन्दभङ्गकारणेणा-ऽशुद्धो भाति / 7 "पजत्त०" इति तु मुद्रितप्रतौ पाठोऽति, किन्तु स न सम्यक् , छन्दोमङ्गत्वात् / 8 "मुत्त मिच्छु" इत्यपि / / “बंधइ" इति मु० प्रतौ।

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