Book Title: Karmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Author(s): Veershekharvijay
Publisher: Bharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
View full book text ________________ * शतकभाष्यम् ॐ नमिऊण जिणं वुच्छामि बंधसयगे चउन्ह बंधाण / दाराणि तहा संखामित्तनिबद्धाउ पयडीओ // 1 // 'पढमवए पगई 1 साइआइ 2 भुयगारमाइ 3 सामित्तं 4 / ठिइ 1 साइआइ 2 सुहअसुह पच्चयं 3 सामिणो 4 बीए // 2 // तह साइआइ 1 पच्चय 2 सुहासुह 3 स्सामि 4 घाइयअघाई 5 / भन्नंति ठाण 6 पच्चय 7 विवाग 8 भेया य रसबंधे // 3 // कम्मपएस गहविहिं 1 भागो 2 तह साइआइ३ सामित्तं 4 / भन्नहि पएसबंधे ठिइबंधेऽट्ठारस इमाउ // 4 // संजलंण४-नाण५-दंसणचउक्क४-विग्धाणि-५ पन्नरस एया / नरतिरिनरयाउ३-विगल३-सुहुमतिग३-विउव्वछक्काणि // 5 // छेवढे उज्जोयं तिर२ओरालियरदुगाणि छप्पयडी / तिन्नि पयडीउ आयवथावरएगिदिजाईओ // 6 // छप्पयडीउ . विउव्वियछक्क इत्तोऽणुमागवंधम्मि / अगुरुलहु-कम्म-तेयग-सुवनचउ-निमिण अट्ठ इमा // 7 // मिच्छ-कसाय१६-दुगछा भय-दसण ह-नाण ५-विग्ध ५-उवधाया। असुभा चउवन्नाई तेयालीसा इमा होइ // 8 // साय-तिरिमणुसुराउग३-नरदुगर-सुरदुगर-पणिदि-तणुपणग 5 / / "समचउर-वज्जरिसभं-गुवंगतिग 3 पवरवन्नाई // 6 // सासु-ज्जोया-ऽऽयव-तित्थ-निमिण-परघाय-उच्च-अगुरुलहू / सुखगइ-तसाइदसग इय बायालीस सुहपयड़ी // 10 // नरयाउ-नरयर-तिरिदुगर- 'विगलिगजाई 4 अ दुखगइअसाया / / उवधायथावरदसगमपढमसंठाण५संघयणा 5 // 11 // नीयं तह सम्मामीसरहियघाईणि "णिट्ठवन्नाई / इय असुभा वासीई पणिदि ऊसास देवदुगा // 12 // १“पढमपए पगइए (पगइबन्धे) साइआई भुयग्गारमाइ" इति मुद्रितप्रतौ / 2 “साई आई सुइअसुहपचयं” इति मु० प्रतौ / 3 "सुहासुहं सामि" इति मु० प्रतौ। 4 “ग्गहणविहि माग तह" इति मु० प्रतौ। 5 “(समचउरंसमगुरुलहुसुखगइपरधाय उज्जोय।।६।। तित्थगरोस्सासायवणिम्मणवंगाणि तह आइसंधयणं। सुपसत्थवन्नच उतसदसोच्चगोयं ति बायाला।।१०।।) (समचउ (...)गुरुलहुसुखगइतसाइदसगं इय बायलीस सुहपयडी॥]" इति मु० प्रतौ। 6 " (इग) विगलजाइअसुहखगइऽसाया' इति मु० प्रतौ। ७“तहरुनिट्ठ'' इति मु० प्रतौ / 8 "उस्सास०" इत्यपि।
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