Book Title: Karm Darshan Author(s): Kanchan Kumari Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ तुलसी को तुलसी जन्म शताब्दी मंगल वर्ष में प्रणाम करती हूँ । तुलसी (गुरुदेव) तीर्थंकर की तरह सर्वातिशायी हैं। जैसा कि तुलसी के जन्म क्षणों में पटल पर कुंकुम चरण चिह्न उभरे थे। लगा, देव जैसे अपने इन्द्र को नमन करने आए हों ।। 1 ।। जीवन विकास उसे ही उपलब्ध होता है जिसे गुरु के प्रति आस्था, निष्ठा है। इसलिए शुद्ध भावों से तुलसी चरण- -कमलों की आराधना करें ।। 11211 तुलसी ने पग-पग पर कीर्तिमान स्थापित किये - - जैसे तुलसी ज्ञानाराधना से प्राज्ञ हो गए, दर्शन से क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी, चारित्र के वे मानो चक्रवर्ती हो गए और क्षमा (सहिष्णुता ) से मानो भावितात्मा अणगार हो गये हो ||3|| तुलसी गुरु विश्वभर में प्रकाश करने वाले थे। वे पाप व संताप हरण करने वाले थे। सर्व रोगों के मिटाने की संजीवनी थी। उनके चरणकमलों में मेरा वंदन हो ।। 4 ।। गणाधिपति श्री के सरस्वती सदा समुपासना करती है। कीर्ति व महिमा उनके खजाने की महालक्ष्मियां हैं। उनके एकाग्र चित्त की महाशक्ति दुर्गा है। मैं उनके चरणों में मेरा एक छोटा-सा लेखन समर्पित करती हूँ ||5|| महर्षि ज्योतिचरण श्री महाश्रमण आत्मा में लीन अध्यात्म की (एकमात्र) मूर्ति है। लगता है राग- -द्वेष से मुक्त वे साक्षात् भगवान हैं और अनुकंपा, मैत्री में लीन, भव्यरूप में सुशोभित हो रहे हैं | | 6 || - साध्वी कंचनकुमारी, लाडनूंPage Navigation
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