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प जुगलकिशोर मुखतार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृत्तित्व
आचार्य शान्तिसागर (छाणी) और उनकी परम्परा
बीसवीं सदी में दिगम्बर जैन मुनि परम्परा कुछ अवरूद्ध सी हो गई थी, विशेषत उत्तर भारत में। शास्त्रों में मुनि-महाराजो के जिस स्वरूप का अध्ययन करते थे, उसका दर्शन असम्भव सा था। इस असम्भव को दो महान आचार्यों ने सम्भव बनाया, दोनों सूर्यो का उदय लगभग समकालिक हुआ, जिनकी परम्परा से आज हम मुनिराजों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं और अपने मनुष्य जन्म को ध्य मानते हैं।
ये दो आचार्य हैं चारित्रचक्रवर्ती आचार्य 108 श्री शान्तिसागर महाराज (दक्षिण) और प्रशान्तमूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी)। कैसा सयोग है कि दोनों ही शान्ति के सागर हैं। दोनो ही आचार्यों ने भारतभर मे मुनि धर्म व मुनि परम्परा को वृद्धिगत किया। दोनो आचार्यों में परस्पर में अत्यधि क मेल था, यहाँ तक कि ब्यावर (राजस्थान) में दोनों का ससघ एक साथ चातुर्मास हुआ था।
प्रशान्तमूर्ति आचार्य शान्ति सागर जी का जन्म कार्तिक बदी एकादशी वि.स. 1945 (सन् 1888) को ग्राम छाणी जिला उदयपुर (राजस्थान) में हुआ था, पर सम्पूर्ण भारत में परिभ्रमण कर भव्य जीवा को उपदेश देते हुए सम्पूर्ण भारतवर्ष, विशेषत उत्तर भारत को इन्होने अपना भ्रमण क्षेत्र बनाया। उनके बचपन का नाम केवलदास था, जिसे उन्होने वास्तव में अन्वयार्थक (केवल
अद्वितीय, अनोखा, अकेला) बना दिया। वि.स. 1979 (सन् 1922) मे गढी, जिला बाँसवाड़ा (राजस्थान) में क्षुल्लक दीक्षा एव भाद्र शुक्ला 14 सवत 1980 (सन् 1923) सागवाड़ा (राजस्थान) में मुनि दीक्षा तदुपरान्त वि.स. 1983 (सन् 1926) में गिरीडीह (बिहार प्रान्त) में आचार्य पद प्राप्त किया। दीक्षोपरान्त आचार्य महाराज ने अनेकत बिहार किया। वे प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। मृत्यु के बाद छाती पीटने की प्रथा, दहेज प्रथा, बलि प्रथा आदि का उन्होंने डटकर विरोध किया। छाणी के जमींदार ने तो उनके अहिसा व्याख्यान से प्रभावित होकर अपने राज्य में सदैव के लिए हिसा का निषेध करा दिया था और अहिसा धर्म अगीकार कर लिया था।
आचार्य पर घोर उपसर्ग हुए, जिन्हें उन्होंने समताभाव से सहा। उन्होंने 'मूलाराधना', 'आगमदर्पण', 'शान्तिशतक', 'शान्ती सुधसागर' आदि ग्रन्थों का सकलन/प्रणयन किया, जिन्हें समाज ने प्रकाशित कराया, जिससे आज हमारी श्रुत परम्परा सुरक्षित और वृद्धिगत है। ज्येष्ठ बदी दशमी वि•स• 2001 (सन् 1944) सागवाड़ा (राजस्थान) में आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) का समाधि मरण हुआ।