Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ प्रस्तुति भगवान् श्री कृष्ण जगत की वह अनुपम मशाल थी, जिसके प्रकाश में जनता ने व्यावहारिक जीवन की कलाओं का बोध प्राप्त किया। ... श्री कृष्ण के विषय में जनता की यह मान्यता रही है कि वे हिन्दुओं के, हिन्दु धर्म के ईश्वर हैं। जैन दर्शन या धर्म का इनसे कोई संबंध नहीं है। . .. ____ लेकिन यह मान्यता भ्रम से भरी हुई है। श्री कृष्ण के संबंध में जैन वाङ्मय में प्रचुर इतिवृत्त उपलब्ध होता है। . भगवान् श्री नेमिनाथ के चचेरे भाई थे-श्री कृष्ण / अतः श्री कृष्ण का जहाँ-जहाँ भी वर्णन आया, वहाँ तीर्थंकर नेमिनाथ का नाम आना अत्यन्त प्रासंगिक ही था। इस संबंध में खरतरगच्छाचार्य श्री जिनकीर्तिरत्नसूरि रचित नेमिनाथ महाकाव्यम् द्रष्टव्य है, जिसमें श्री कृष्ण के जीवन की महिमा का भी प्रचुर वर्णन हुआ है। प्रस्तुत शोध निबन्ध जैन शास्त्र "हरिवंश पुराण व सूरसागर,में वर्णित श्री कृष्ण" के स्वरूप की तुलनात्मक विवेचना है। ___वस्तुतः धार्मिक सिद्धान्तों की विवेचना में जो थोड़ा बहुत पृथक्त्व नजर आता है, उसके अलावा श्री कृष्ण चरित्र के संबंध में कोई विशेष मतभेद नजर नहीं आता। वास्तव में दीर्घ दृष्टि से उदारवादी, विशाल चिंतनपूर्ण मस्तिष्क के झरोखे से देखा जाय तो सार यही निकलता है कि सारे धर्मों का शुद्ध लक्ष्य सर्वगुणसम्पन्न, सर्वदुःखरहित, आधि-उपाधि विहीन, अखंड आनन्द युक्त मोक्ष को प्राप्त करना है। इस लक्ष्य का साधन है—मानवता के गुणों की पराकाष्ठा। ___जब तक मानवीय गुणों की आभा व्यवहार और आचरण में प्रतिबिम्बित नहीं होगी, तब तक मोक्ष की कल्पना कोरी कल्पना रह जायेगी, यथार्थ नहीं बन सकती। मानवीय गुणों को पुरस्कृत करना, यह हर महापुरुष का संदेश रहा है। वे स्वयं अपनी जीवन प्रक्रिया को इसी आचार निष्ठा में तपाते हैं, तभी वे उदाहरण और प्रतीक बनकर पथ-प्रदर्शक बनते हैं। हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण के इसी गुण को प्रखरता से प्रकट किया गया है तो सूरसागर के श्री कृष्ण का वर्णन भी मानवीय धरातल से ईश्वरीय क्षमता की अनमोल अवधारणा से जुड़ा हुआ है। -