Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ शुभाशंसा भारतीय साहित्य में श्री कृष्ण के चरित्र, अलौकिक व्यक्तित्व और लीलाओं का वर्णन पुरातन काल से होता आया है। उनकी लीलाओं एवं उपदेशों का गहरा प्रभाव जन जीवन कला एवं साहित्य में स्पष्टतः देखा जा सकता है। उनका विराट व्यक्तित्व समस्त भारतीय साहित्य पर छाया हुआ है। भारतीय वाङ्मय में वेदों से लेकर अद्यावधि तक इनके विराट व्यक्तित्व ने भारत के आध्यात्मिक एवं भौतिक क्षेत्रों को समान रूप से आवृत कर रखा है। विभिन्न भारतीय भाषाओं, धार्मिक सम्प्रदायों, परम्पराओं में श्री कृष्ण साहित्य सशक्त प्रेरणा का स्रोत रहा है। यही कारण है कि ब्राह्मण परम्परा की भाँति जैन परम्परा के भी अनेक ग्रंथों में कृष्ण चरित्र का निरूपण हुआ है। संस्कृत साहित्य-परम्परा में रचित "हरिवंश पुराण" जैन मुनि जैनाचार्य श्री जिनसेन की श्री कृष्ण चरित्र पर आधारित अमर कृति है। इसमें श्री कृष्ण का अमानवीय घटनाओं का बौद्धिक विश्लेषण कर आदर्श मानवीय मूल्यों की गवेषणा, श्री कृष्ण को जन-नायक के रूप में प्रकट करना तथा जैन दर्शन के प्रति लोगों की आस्था पैदा करना रचनाकार का मूल लक्ष्य रहा है। इधर 'सूरसागर' भारतीय सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक व मध्यकालीन कृष्ण काव्य की एक असाधारण एवं विशिष्ट उपलब्धि है। ये दोनों ही ग्रंथ अपनी धर्मदर्शना तथा भाव बोध की दृष्टि से जन-कल्याणार्थ जिन-दीक्षा तथा नर से नारायण बनाने की संकल्पना में अप्रतिम हैं। दोनों के मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं, लक्ष्य समान है। धर्म की भाव-भूमि पर दोनों पृथक् हो सकते हैं, संस्कृति, भाषा एवं विचार के स्तर पर भारतीय मनीषा के अभिन्न अंग हैं। आज का कृष्ण चरित्र एकाधिक कृष्ण नामधारी महापुरुषों का समन्वित रूप है। इतिहास और कल्पना के आधार पर हुए इस समन्वय में ऐतिहासिक श्री कृष्ण के सत्य जीवन चरित्र को खोज पाना असम्भव सा हो गया है। यही कारण है कि आज के जनजीवन में मानवीय मूल्यों का उत्तरोत्तर ह्रास हो रहा है। वस्तुतः साहित्यकार लोकनायक के माध्यम से ही शाश्वत जीवन-मूल्यों को समाज तक पहुँचाने का सफल प्रयास करता है। आचार्य जिनसेन एवं महात्मा सूरदास; दोनों ही भिन्न-भिन्न परम्परा के कवि हैं, उनकी भाषा एवं रचनाकाल भी अलग-अलग है; फिर भी दोनों कवियों के वर्ण्य-विषय में कृष्ण चरित्र के मानवतावादी स्वरूप को उजागर करना शोधार्थी का मूल अभिप्रेत है। साथ ही संस्कृत साहित्य के उदात्त गुणों से अलंकृत "हरिवंश पुराण" ग्रंथ रत्न का SIVE