Book Title: Jambuswami Charitam
Author(s): Ratnaprabhsuri, Hemsagarsuri
Publisher: Dhanjibhai D Zaveri
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चतुर्गतिदुःखानि।
॥ ३६॥ भडचडगरगुरुसामग्गिसंगओ उसभदत्तवरइब्भो । सह धारिणीभजाए, वंदणवडियाए नीहरिओ ॥३७ ॥ अंतरपहमि जम्बूचरित्रे
मिलिओ, से समणोवासगो निमित्तविऊ । भणिओ किंनु चिराओ, दीससि जसमित्त मित्त ! तुमं ॥ ३८ ॥ भणियमणेण सम- | ॥१०॥ णाण, सव्वया पायपज्जुवासाए । अक्खणियमणस्स न कोइ, अवसरो अह कहसु एयं ॥३९॥ उबचियचिंतासंतावतत्तचित्त व्व
भाउजाया मे। किमिमा सामेण मुहेण, दीसए साहसु महेयं ।। १४०॥ भणियमणेणं सयमेव किं न पुच्छेसि जेण वजरइ । तह चेव कए सा आह, साहु देवर ! निमित्तं ते ॥४१॥ जं पुच्छियं वियाणसि, इत्थं को नाम नहि निमित्तन्नू । मह चित्तं चिंतेऊण, ता सयं कहसु निदेसं ॥ ४२ ॥ जसमित्तो मंतेऊण, तो खणं आइसेइ हुँ नायं । उत्तमपुत्तमपुत्ता, विसन्नचित्ता समीहेसि ॥ ४३ ।। सउणो सउणो लद्धो, सिद्धो चिय ते मणोरहो अहुणा । इह भरहे चरमो 'केबली य तुह पुत्तओ होही ॥४४॥
केसरिकिसोरमुच्छंग-संगयं निग्गय व चंदाओ। तं सुमिणमि समिक्खसि, अचिराओ पञ्चओ एसो ॥४५॥ तुह किंतु अंतकराओ, अच्छइ तुच्छो स केणइ सुरेण । आराहिएण संतं, जाही जाणेमि तं न सुरं ॥४६॥ हरिसभरनिब्भरंगी, सह जसVI मित्तण सा पयपंती। सहसत्ति उसभदत्ताणुचारिणी काणगंमि गया ॥४७॥ तिपयाहिणपुव्वं, पणमिऊण पाए सुहम्मकेवलिणो। दोनिवि दूरियदुरियाई, देसणं ताई निसुणंति ।। ४८ ।।
तथाहि-" नृभवादिसर्वसामध्यमभ्यमासाद्य शाश्वतसुखाय । यतनीयमसात शताऽऽश्रिता दि गतयश्चतस्त्रोऽपि ॥४९॥"
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आकृष्टिर्घटिकादतिसङ्कटमुखाच्छित्वा च भित्त्वा च सा, पाकः पावककन्दुकेषु कदनं काकश्च कङ्कादिभिः ।
ज्वालाजालकरालसंज्वलदयापुत्री दृढालिङ्गनं, कामेकां नरकावनीषु विषमामाचक्ष्महे वेदनाम् ॥ १५० ॥" १ केवलीण ते अत्तओ होही B. C. D. I २ शि०, सिता श्रिता DI
1१०
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