Book Title: Jambuswami Charitam
Author(s): Ratnaprabhsuri, Hemsagarsuri
Publisher: Dhanjibhai D Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जम्बूचरित्रे | योगराज्ञा ॥३६॥ Recene Doormomeocomope पुरुष०-नहु रक्खेइ देसु पुरु पट्टणु, कर करेइ नवनवा अभिक्खणु । मंडइ कूडुपजाई जउप्परि, कोसु तहावि होइ रित्त उपरि ॥५५॥ कुसलि खेमि संजाइ विहाणइ, अज्जु जाउ नायरजणु जाणइ । दिवसु जाइ वरिसेण समाणउ, सो करेइ इयराणि वराणउ ।।५६।। योग-साध्वी राजलीला । काकोऽपि पार्थिवो राजहंसपरिवारः श्नाध्यते तत्कथय कः पुनरमात्यः । विसंवादि| पुरु०-अन्नाओ अमचो। जस्स पुरे पत्ताणं, रावा हत्थाण होइ परिताणं । उप्पिट्टणय पहारो, जारिसउ मालपडियाणं ॥ ५७ || IN राज्यस्थिति | योग०-उचितमुचितेन योजयति विधिः । अविचारस्य खल्वन्याय एव संगच्छते । युक्तं चोद्यते-जूयारियस्य धूया, परिणीया | प्रेक्षणम् । NIगंठिछोडपुत्तेण । जुडियं वेवाहित्तं, मिलिय रयणस्स उ रयणं ।। ५८ ॥ योग-का प्रतीहारः । पुरु०-पिसुणपयारो पडिहारो। IN पडिओ सुकालह पासि, एत्थु अस्थि मनभंतिकरि । जो पडिहारह पासि, धणकणलुद्धउ जाइ जणु ।।५९।। योग०-कः पुनर्नगरारक्षः । पुरुषः-सव्वडि'नामो। चोरचरडबंदियहं न भुक्काइ, भासिउ भागु लेइ नहु संकइ । रक्खवालु खयकालु सुरज्जह, सव्वलडि भुलइ न सकज्जह ।। ४६० ॥ योग०-अहो माणिक्यानामेकावली । श्रेष्टी कतमा १ । पुरुषः-लइवुडित्ति सेट्टी। विहिमाणिहिं ववहरइ निच्चुसेई तुलकरिसिहिं । घयमहुगुग्गुलगुलीगुलिहिं, इयरेहिं विमिस्सिहिं ॥६१।। पंचवीस बोल्लेइ बोल्लि पावियइ न एक्कहिं । तहवि धम्मतुल्ल एत्थु नयरि मन्नियइ सुलोक्केहिं ॥ ६२ ॥ परं पुत्तेण "गुणमालेण, | मूलनासेण लहुणावि । विभिन्नी भूएण संपइ, पच्छे पाडिउव्व सो जाओ ॥६३॥ जओ-उग्घाडइ फुक्काए तालय मच्छीणमजणं हरइ । खणइ कुणीहिं खत्तं, गंठिं छोडेइ पाएहिं ।। ६४ ॥ योग०-अहो एकैकमेकागलम् । अस्ति मुनिरत्र कश्चिद्विपश्चित् । पुरुषः-अत्थि डलकावणसीसमितपरिवारो महातवस्सी सावगिली। छारभरूकुंडियंगो वियडजडाजूडमंडियसिरगो । बगझाणं झायंतो, गसिउमणो सव्वपुरदव्वं ॥ ६५ ॥ 6/॥ ३६॥ 22eRcoccero For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64