Book Title: Jambuswami Charitam
Author(s): Ratnaprabhsuri, Hemsagarsuri
Publisher: Dhanjibhai D Zaveri

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जम्बूचरित्रे ॥ ५० ॥ C www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाहि तो होउ फलसिद्धी ॥ ९८ ॥ पेक्खइ अक्खलियअखुद्धलद्धलक्खो खणेण तत्थ गओ । दुग्गादेवीए पुरो, निविदुमेगं महाजोगिं ॥ ९९ ॥ रत्तंदणमंडलपासदिन्नमाणुसबसा पईवोहं । मंडलपुरओ पुरिसं च रत्तकणवीरमालाए । ६०० ॥ पच्छाहूत्ते बाहू, सुबंधवद्धे करितु पक्खित्तं । उम्गीरिऊण खग्गं, जावंते जंगए जोगी ॥ १ ॥ तुह देवि ! मए दिन्नो, अन्नबली एस होउ मंसबली । कुमरेणुत्तो तो सो, रे रे काउरिस ! किं कुर्णासि ॥ २ ॥ किं निरवराह संजमिय, अंगुवंगं निहीण ! हणसि धुवं । बंधनरज्जुं छिंदेसु, अन्नहा नत्थि ते जीयं ॥ ३ ॥ इय भणिओ सो वरसेणसम्मुद्दो वलइ खम्गवम्गकरो । सोवि उवेइ विकोसी, काऊ करालकरवाल || ४ || अइगरुयलग्गसंजुगरंगेणं तेण पिल्लिऊण लहुं । जमपासे पट्टविओ, सो जोगी पावपडिइच्छो ॥ ५ ॥ खग्गेण खंडिऊणं, कुमरो संजमणरज्जुमुवविसियं । पुरिसस्स पुरो पुच्छर, को एसो कम्मचंडालो ॥ ६ ॥ भणियमणेण एसो, नामेण मघोरघंटजोगिंदो । दाडं दुग्गाए बलिं सिद्धिकर अहमिहाणीओ ||७|| एयाहिं पाउयाहिं, चडिओ हिंडेइ तिहुयणं सयलं । पुरिसं विसज्जियं कुणइ, पाउया सो सपाएसु ॥ ८ ।। हुंकारिकण पाडलिपुत्ते पत्तो तओ खणेणं सो देसंतराओ दव्वं, आइरईपायाढो || ९ || चिंतेइ कहवि केणइ, मिसेण जइ नाम कुट्टणि दूरे ने मिल्लेमि महुं, पियामि निम्मच्छियं ताई || ६१० || स कयाइ चंगसवंगसंगि सिंगारसुंदरी होउं । तेण पहेणं चकममाणो तीए सयं दिट्ठो ॥ ११ ॥ चिंतियमेयाए पुणो वि, दव्वमेवज्जियमतं । ता कवडेणाणेडं मागहियाए समप्पेमि ॥ १२ ॥ दासीहिं जाव हकारिओषि नोबेइ कुट्टिणी ताव । तं गंतूणं आणइ कवि बाहार घेतूण ॥ १३ ॥ इय तुज्झ पुत्त ! जुत्तं वृत्तं अकहंतओ गओ जमिओ । तदिवसाओ जाया, गहगहिया अहह मागहिया ॥ १४ ॥ भणियमणेणं माए ! मा कुप्पसु कज्जगरुययाए गओ । अहुणा पुणो वि पत्तो, आएसं देसु किं कुणिमो || १५ || देह पुणो सो दव्वं, समग्गलं मग्गियाओ निच्चपि । तो सा चमकिया चिंतवेइ कत्तो धणमण ।। १६ ।। तो भणिया मागहिया, वच्छे ! पुच्छेसु अज्जणोवायं । भणइ मा माए ! तुज्झ, लगिया किं पुण अच्छी ॥ १७ ॥ जइ वारिया न अच्छसि पुच्छ्सु सयमेव ता तुमं अम्मो । नियमेवेदं तं सञ्चवेसि लोहाला नामं ॥ १८ ॥ जइवि रइरमणजन्त्ता, पत्ता For Private And Personal Use Only अतिलोभे लोहर्गलागणिका कथा | ॥ ५० ॥

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