Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 10
________________ [9] ***************** मूर्ति पूजा इसके दर्शन आदि का वर्णन भी जैनागमों में अवश्य मिलता। अतएव 'मूर्तिपूजा', 'जीवरक्षा', 'गुणवत्ता' एवं 'आगमिक विधि-विधानों' आदि किसी भी दृष्टि से 'जिनागम सम्मत' नहीं है। हमारे कितनेक मूर्त्तिपूजक बंधु एवं इनके मान्य गुरु वर्ग मूर्तिपूजा को जिनाज्ञानुसार बतलाने की कोशिश करते हैं, इसके लिए आगम की दुहाई भी देते हैं, किन्तु यह मात्र भ्रम जाल है। मूर्तिपूजक समाज जिन-जिन मुद्दों के आधार से मूर्त्ति पूजा को जिनाज्ञानुसार बतलाते हैं, उनमें कितनी सत्यता है, आगम पाठों को किस प्रकार तोड़ मरोड़ कर उनका अर्थ किया है, इन सब बातों का समाधान आगमपाठों का संदर्भ देकर सचोट इस पुस्तक में किया गया है। श्री ज्ञानसुन्दर जी म. ( जो मरुधर केशरी कहलाते ) पहले स्थानकवासी परम्परा में दीक्षित हुए, स्थानकवासी समाज से वे बहिष्कृत किए जाने पर, वे मूर्तिपूजक समाज में जा मिले और वहाँ जाकर आपने वहाँ " मूर्त्ति पूजा का प्राचीन इतिहास" नामक पुस्तक लिखी, जिसमें आपने आगम के कुछ खोटे उद्धरण देकर मूर्ति पूजा को जिनागम सम्मत बताने का प्रयास किया। आपके दिए गए उद्धरण कितने बेबुनियादी, अयथार्थ एवं आगम विरुद्ध है, उन सब का उत्तर (समाधान) श्रीमान् रतनलाल जी डोशी, सैलाना ने इस पुस्तक में विस्तार से किया है। आदरणीय रतनलाल जी सा. डोशी अपने समय के प्रकाण्ड विद्वान् एवं चर्चावादी रहे, आपके नाम से ही मूर्ति पूजक समाज के साधु-साध्वी घबराते थे । आपने “ मूर्ति पूजा का प्राचीन इतिहास" में चर्चित मुख्य - मुख्य सभी मुद्दों का जिनके बल बूते पर मूर्त्तिपूजक समाज मूर्त्ति पूजा को आगमानुसार होना करार देते हैं। उनका आगम प्रमाणों से ---- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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