Book Title: Jainagama viruddha Murtipooja Author(s): Ratanlal Doshi Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 9
________________ [8] Jain Education International रूप वाणी वर्तमान में बत्तीस आगमों के रूप में हमारे समक्ष उपलब्ध है, जिसे सम्पूर्ण श्वेताम्बर समाज मान्य करता है। इन आगमों में अन्यान्य विषयों के अलावा चतुर्विध संघ के प्रत्येक घटक (साधुसाध्वी, श्रावक-श्राविका ) के धर्माराधना के लिए विधि विधानों का सविस्तार उल्लेख किया गया है । किन्तु सम्पूर्ण बत्तीस आगमों में बिन्दु मात्र कहीं पर भी मूर्ति पूजा करने या मूर्ति के दर्शन करने की आज्ञा नहीं दी है। न ही किसी श्रमण महात्मा या श्रावक महोदय के चारित्र वर्णन में यह बात मिलती है कि उन्होंने प्रभु की मूर्ति के दर्शन या पूजा की हो, संघ निकाल कर यात्रा की हो, मन्दिरों का निर्माण करवाया हो, प्रतिष्ठा महोत्सव आदि करवायें हो यानी इस प्रकार की किसी भी क्रिया का उल्लेख न आगम में है, न ही प्राचीन कथानकों में है। आगमों में जहां भी श्रावकों की धर्माराधना का वर्णन है, वहाँ श्रावक के व्रत ग्रहण करने, प्रतिमाओं की आराधना करने, अपनी पौषधशाला में दया, पौषध संवर क्रिया करने का तो उल्लेख है, पर कहीं पर भी ऐसा वर्णन नहीं मिलता कि अमुकअमुक भगवान् के श्रावक ने इतने मंदिर बनवाये, जिर्णोद्धार करवाया, मूर्ति पूजा की, उनके दर्शन आदि किए हों। इसी प्रकार भगवान् के साधुवर्ग द्वारा मंदिरों के निर्माण, उनके जिर्णोद्वार, प्रतिष्ठा महोत्सव आदि करवाने का वर्णन एवं संघ आदि निकलवाने का कहीं उल्लेख नहीं है, जबकि साधु एवं श्रावक वर्ग के साधना विधि के लिए सूत्र के सूत्र भरे हुए हैं, जिनमें उनके छोटी से छोटी साधना का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। यदि मूर्त्ति पूजा जैनागम सम्मत होती तो जिस तरह अन्य साधना विधि का वर्णन आगमों में है उसी प्रकार ********** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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