Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 16
________________ 6 1 [ जैनविद्या-13 तथा निगोद है । किन्तु संसारी अज्ञानी प्राणी उस मधु की एक बून्द को लेना चाहता है और चारों गतियों के दुःख तथा निगोद के दुःखों को भी नहीं गिनता। तात्पर्य यह है कि संसार के दुःख पर्वत के बराबर और सुख सरसों के दाने के बराबर हैं दु.ख मेरुपमं सौख्यं संसारे सर्षपयोपमम् । यतस्ततः सदा कार्यः संसार त्यजनोद्यमः ।। सांसारिक जन विषयों से प्राप्त हुए दुःख को सुख कहते हैं जैसे कि बुझे हुए दीपक को लोग बढ़ा हुआ कहते हैं। दुःखं वैषयिकमूढा भाषन्ते सुखसंज्ञया । विध्यातो दीपकः किं न नन्दितो भण्यते जनः ।। आचार्य द्वारा निबद्ध चार मूों की कथा, रक्त पुरुष की कथा, द्वेषी पुरुष की कथा . इस प्रकार अनेक कथा-प्रसंगों के आश्रय से तत्व समझाने की कोशिश मनोवेग विद्याधर ने अपने मित्र पवनवेग को सम्यग्दृष्टि बनाने के लिए की है । मिथ्यामान्यताओं के स्थान पर सच्ची मान्यताओं को समझाने का प्रयत्न किया गया है जैसे जैनेतर साहित्य में पांडवों की माता कुन्ती के चार पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में झूठी मान्यता को हटाकर सच्ची मान्यता रूप बताना प्राचार्य की विवेक बुद्धि का नमूना है । जैनेतर पुराणों में कर्ण की उत्पत्ति सूर्य से, युधिष्ठिर की उत्पत्ति धर्म से, भीम की उत्पत्ति यम से और अर्जुन की उत्पत्ति इन्द्र से तथा धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी के पनसफल में एक सौ पुत्रों की उत्पत्ति का होना माना गया है। इस प्रकार अनेक मिथ्या बातों का पोषण अन्य मतावलम्बियों के पुराणों में उद्धृत है, उसे मनोवेग विद्याधर के माध्यम से प्राचार्य ने खण्डित किया है। वेदों का अपौरुषेयपना. चार्वाक का पंचभतों के द्वारा जीव उत्पत्ति होना आदि सभी का खण्डन किया है। कहाँ तक गिनाया जाय धर्मपरीक्षा में मिथ्या देवी देवताओं, ऋषि-महर्षियों की काल्पनिक उत्पत्ति का खण्डन कर और सम्यक् उपदेश देकर मिथ्यात्व का खण्डन किया है। 3. सुभाषित-रत्न-संदोह-प्राचार्य अमितगति की 'सुभाषित-रत्न-संदोह' नाम की रचना अद्वितीय है। यद्यपि भारतीय संस्कृत वाङमय में सुभाषितों की रचनाएं कम नहीं हैं, किन्तु जैसी रचना आचार्यश्री की है वैसी बहुत कम है। आत्मानुशासन के कर्ता आचार्य गुणभद्र ने भी अपनी रचना में सुभाषित लिखे हैं किन्तु जो साहित्यिक छटा, छन्दों का वैविध्य, प्रालंकारिकता और विषय-चयन की सूझ-बूझ प्रस्तुत रचना में है, वैसी अन्यत्र नहीं। इस रचना में प्राचार्य ने बत्तीस प्रकरण रचे हैं, यथा सांसारिक विषय, क्रोध, माया, लोभ की निन्दा, ज्ञान,

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