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जनविद्या-13 ]
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छह प्रावश्यक - सामायिक, स्तवन, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग ये छः आवश्यक हैं (8.29)। इनमें से प्रत्येक के साथ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, नाम और स्थापना शब्द लगाना चाहिए (8.30) । जैसे- द्रव्य सामायिक, क्षेत्र सामायिक, काल सामा. यिक, भाव सामायिक, नाम सामायिक और स्थापना सामायिक । इसी प्रकार स्तवन आदि के साथ द्रव्यादि की योजना की जाती है ।
सामायिक-जीवन-मरण, योग-वियोग, प्रिय-अप्रिय, शत्रु-मित्र तथा सुख-दुःख में समताभाव धारण करना सामायिक है (8.31)।
स्तवन-अनन्त गुणों के पात्र जिनेन्द्र भगवान् के गुणों का स्तोत्र तथा नाम की निरुक्ति करना स्तवन है (8.32)।
बन्दना - कर्मरूपी वन को जलानेवाले पंच परमेष्ठियों को मन, वचन तथा काय की शुद्धता से नमस्कार करना वन्दना है (8.33)।
प्रतिक्रमण - द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव से लगे दोषों के समूह का शोधना, निन्दा, गर्हादि क्रिया प्रतिक्रमण है (8.34)।
प्रत्याख्यान-अयोग्य नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का आगामी पाप के निषेध के लिए मन, वचन, काय से त्याग करना प्रत्याख्यान है (8.35)।
कायोत्सर्ग-यथाकाल आकुलता-रहित होकर समस्त आवश्यक क्रियाओं के समय शरीर के प्रति ममत्व-त्याग कायोत्सर्ग है (8.36) ।
इन सबका विस्तृत निरूपण अमितगति श्रावकाचार के अष्टम परिच्छेद में है ।
. चतुर्विध धर्म दान, पूजा, शील और उपवास-यह चार प्रकार का श्रावकों का धर्म है (9.1)। दान चार प्रकार का होता है-अभय, अन्न, औषध और ज्ञान । जिस प्रकार समस्त आधार के कारण आकाश से कोई बड़ा नहीं है उसी प्रकार अभयदान से बड़ा अन्य कोई दान नहीं है (9.87)।
जो व्यक्ति अन्न प्रदान करता है वह शम, दम, दया, धर्म, संयम, विनय, नय, तप, यश और वचन की दक्षता प्रदान करता है (9.92)।