Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 80
________________ 70 1 [. जनविद्या-13 मोक्षमार्ग पर आरूढ होकर उत्कृष्ट तप द्वारा कर्म-समूह का नाश करता है और 'अमितगति' अर्थात् अनन्तज्ञान का धारक बनकर मोक्षस्थान का अधिकारी होता है बन्धं पाकं कर्मणां सत्वमेतद्वक्तुं शक्तं दृष्टिवादप्रणीतम् । शास्त्र ज्ञात्वाऽभ्यस्यते येन नित्यं सम्यक् तेन ज्ञायते कर्मतत्त्वम् ॥ . कर्मबन्धगुण-जीवमार्गणास्थानयोजनपरायणोऽस्ति यः । सत्तपोदलित कर्मसंहतिः सोऽस्तु तेऽस्तिगति: शिवास्पदम् ।। (5.483-84) 1. पंचसंग्रह के द्वितीय परिच्छेद का मंगलश्लोक ।

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