Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 89
________________ जैनविद्या - 13 ] हरिवंशपुराण [ 79 तीन लोकरूपी जिसकी दीर्घनाल (मृणाल) है, नेमिनाथ, बलभद्र तथा कृष्णरूपी केसर ( पराग ) से जो सुशोभित है, तिरेसठ महापुरुष ( शलाका पुरुष) जिसके पत्ते हैं ऐसा हरिवंशरूपी कमल जयवन्त हो । कृष्ण और पाण्डवों की कथा को चतुर्मुख और व्यास ने जिस प्रकार कहा और जिसके द्वारा प्रवर दर्शन ( सम्यग्दर्शन) नष्ट नहीं होता ऐसी उस लोकप्रिय कथा की मैं रचना करता हूँ । परमवीर किन्तु मूर्ख और चारित्र से खण्डित नारी की तरह सम्यग्दर्शन को नष्ट करनेवाले मिथ्यादृष्टियों द्वारा रचित काव्य को भी छोड़ दो। जो श्रेणिक राजा द्वारा जैसा पूछा गया, गौतम ( गणधर ) द्वारा जैसा कहा गया और (आचार्य) • जिनसेन द्वारा जैसा वरिणत किया गया उस कथानक की मैं भी थोड़ी सी वैसी ही रचना करता हूँ। मैं ऐसा क्यों कहूं कि मानो यह हरिवंशपुराण अलंकारों और श्रेष्ठ रसों का सागर ही है ? क्या संसार में आत्मप्रशंसा और परनिंदा गर्हित नहीं हैं ? जिस बुद्धिविहीन द्वारा अपनी स्तुति की गई वह उसके द्वारा स्वयं निंदित ही किया गया । ( क्या) शक्ति के प्रदर्शन को भी लोग इस ही प्रकार नहीं पुकारते हैं । जिनवरों द्वारा जैसा कथन किया गया है उसको बिना प्रयास ही जो विशुद्धरूप में (जैसा का तैसा) जोड़ दे ( रच दे) मैं उसका जैसा तथा भव्यजनों का स्नेही भी नहीं हूँ धवल' द्वारा रचित भव्यजनों का आनन्दस्वरूप तथा चाण्डाल चौकड़ी अभव्य लोगों के लिए सूलरूप यह सुशोभन हरिवंशकाव्य घन्य करनेवाला है, इसे सुनिए ! यह सारगर्भित अर्थवाला है, दोष से परिमुक्त है, संयम को निपजानेवाला है, धवल है, काव्यों में कुण्डलरूप (श्रेष्ठ) है, मनोहर है । विचक्षरण लोग अवश्य ही इसे कसें, (इसका) परीक्षण करें, महान् गुणीजन इसे सुनें । जिननाथ को पुष्पाञ्जलि अर्पित करके, निराभूषण ( दिगम्बर) मुनियों को प्रणाम करके यादवों का प्रवर चरित्र जिसमें प्रकट किया गया है ऐसा हरिवंशकाव्य मैं सूर का पुत्र (धवल) आपको समर्पित करता हूँ । । इस लोक में पापों को नष्ट करनेवाला, चारों गतियों के भ्रमरण का निवारण करनेवाला, तीनों लोकों में हितकारी, दोषों का निवारण करनेवाला मव्यजनों के मोक्ष का सार जिसमें है ऐसा जिनशासन जयवंत हो । मात्रा - जिनवचनरूपी समुद्र में डुबकी लगाकर घवल के द्वारा यह थोड़ा सा जल लाया गया है इसे लोग कानरूपी अंजुली से पीवें, यह अकाल में ही ( समय से पूर्व ही ) पापों नष्ट कर देता है । जलन जो भावपूर्वक ज्योतिषदेवों से वंदित है, सम्पूर्ण पापदोषों से रहित है, वह कलुषित पापों का क्षय करनेवाला जिनेन्द्र भट्टारक आपके पापों का हरण करे ।।12।।

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