Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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82 ]
जनविद्या-13
1.3
कवि चक्कवइ पुग्वि गुणवंतउ, पुणु सम्मत्तहं धम्मसुरंगउ, देवणंदि बहुगुरगजसभूसिउ, वज्जसूउ सुपसिद्धउ मुरिणवरु, मुणि महसेणु सुलोयणु जेण वि, जिणसेरणे हरिवंस पवित्त वि, दिणयरसेणे चरिउ अणंगहु, अंब्बसेणु जें अमियाराहणु, जिरण चन्दप्पहचरिउ महोहरु, अण्ण मि कियइं माइंरुहपुत्तइ, सोहणंदिगुरुवें अणुपेहा, सिद्धसेणु जे गए प्रागउ, रामरणंदि जे विविह पहारणा, असगु महाकइ जे सुमरगोहरु, कित्तिय कहमि सुकइ गुणप्रायर सरणकुमार जें विरयउ मरणहरु, तह वक्खइ जिण रक्खिउ सावउ, सालिहददु कि कइ जीय उददउ, इक्कहि जिणसासणि उच्छलियउ, पउमुचरिउ जे भुवरिण पयासिउ, हउं जडु तो विकिपिन भासमि
धीरसे हुंतउ रण्यवंतउ । जेरण पमाणगंथ किउ चंगउ । जे वायारणु जिणिदु पयासिउ । जेरण पमाणु गंथु किउ सुंदरु । पउमचरिउ मुरिण रविसेरणेण वि । जडिल मुरणी गवरंगचरित्त वि । पउमसेरण प्रायरिय पसंगहु । विरइय दोसविवज्जिय सोहण । पावरहिउ धरणयत्तु ससुंदरु । विण्हसेरण रिसहेण चरित्तई । गरदेवे रणवकांतु सुरणेहा । भवियविगोउ पयासिउ बंगउ । जिणसासरिण बहु रइय कहा । वीरजिरिंगदु चरिउ कि उ सुंदर । गेय कव्व जिह विरइय सुंदरु । कइ गोविंद पवरु सेयवरु । जें जय धवलु भवणिविक्खाइउ । लोयइ चहुमुहं दोणु पसिद्धउ । सेदु महाकइ जसु णिम्मलियउ । साधुणरहि गरवरहि पसंसिउ । महियलि जे पियवुद्धि पयासमि ।
घता-सहसकिरणु रइवेबि गयरिण,
रिणय सत्ते मरिणदावउ जइवि,
चडेवि तिमिर असेस परणासइ। सुथोचउरु वि उज्जोउ पयासइ ॥31॥
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चरिउ दु बुद्ध वहुप्रकहजुत्त वि, धीरउ चित्त करिवि तोवि रयमि, खलमंडल भासंत्तरण गज्जहि,
भवरिण पसिद्धउ गंथु बहुत्तु वि। विरुउ विडवि जिम भल्लि म पावमि। जूववसेरण रण वत्यु चइहिं ।

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