Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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[ जनविद्या-13
वीर जिणिदु रणविवि तह रिणम्मलु, पविवि उसहु प्रजिउ तह संभउ, परणविवि सुमइ गविवि पउमप्पह, पुप्फयंतु सीयलजिणु पणविवि, वासुपुज्ज पुणु विमल भडारउ, संति कुथु अरु मल्लि जिणेसर रणमि सहरणेमि पासु भवरणासु,
वहइ तित्थु जसुतरणउ समुज्जलु । पुणु अहिणंदणु सुजिणु अणुभउ । रगविवि सुपासु तहय चंदप्पहु । भावें पुणु सेयंसु रगमंसिवि । गविवि प्रणंतु धम्मु गुणसारउ । मुणिसुव्वउ गवेवि परमेसरु । वढ्ढमाणु पुणु पावपणासणु ।
घत्ता-ए चउवीस जिरणवर, बहुलक्खरणधर, सुरवर रणमिय णवेवि ।
मई प्राढत्त महाकह, जण रिणसुणहु इह, प्रइ विचलु भाउ करेवि ॥1॥
प्रणिहि खितहि जे जिण केविय, जे होसहि जे हुयइ जिसइ, पुण तह सिद्धायरिय णवेप्पिण, साहम्मियहं सुदिढचारित्तह, चितम किंपि धम्मुजसु जेण वि, प्रथिरु विढिवि धरणेण किं किज्जइ, ठाउ कुटुंबु सरीक प्रसारउ, भुक्खइ तिसइ रिगच्च पीडिज्जइ, जररक्खसि झिज्जंतउ सीसइ, कइहिमि दिवहयम्मि फिट्टीसइ,
भावें विवि भडारा ते विय । पुणु पुणु भावें णविवि प्रसेसइ । अज्जियाहं पणवाउ करेप्पिणु । इच्छाकार करिवि सुचरित्तहं । वढ्ढइ मुच्चइ पावमलेरण वि । णासइ अहवसइ ण मरिज्जइ । रोय सोय बहुदुक्खहं गारउ । घम्में तप्पइ सीयइं भिज्जइ । भंति पाहि फिटेंतउ दीसइ । अंत कयंत वयरिण पइसीसइ ।
पत्ता-जो रवि मरइ, रण छिज्जइ रवि पीडिज्जइ, प्रक्खउ भुवरिण भीर वि।
करमि सुयरण संभावउ, क्खल संतावउ, हउ कव्यमउ सरीर वि ॥2॥

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