Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 50
________________ 40 ] [ जनविद्या-13 ... ज्ञाता-दृष्टा की इस साधना में न किसी संघ की न किसी क्षेत्र-काल वा आसनादि की अपेक्षा है । ये सब साधन भी विकल्प हैं। जब जहाँ हैं वहीं चैतन्यभाव में स्थिर हो जागो । ऐसी प्रेरणा दी है। वह सहज-आनन्दरूप अवस्था अभी इसी क्षण तुम्हें हो सकती है । जागो और देखो-आनन्द में लीन हो जाओ। मात्मानमात्मन्यवलोकमानस्त्वं दर्शनज्ञानमयो विशुद्धः । एकाग्रचित्तः खलु यत्र-तत्र स्थितोऽपि साधुर्लभते समाधिम् ॥

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