Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 64
________________ 54 जैनविद्या-133 अतिशयोक्ति शैली का भी भरपूर उपयोग हुआ और इतिहास तत्व पीछे रह मया। इसी पृष्ठभूमि में पुराणों की रचना हुई जिनमें आख्यानों की अतिरंजित शैली ने अविश्वसनीयता को और गहरा बना दिया । धूर्ताख्यान और धर्मपरीक्षा में इन्हीं पाख्यानों पर करारा व्यंग्य विनोदात्मक ढंग से किया गया है । ग्रन्थकार-हरिषेण नाम के लगभग सात कवि हुए हैं जिनमें धम्मपरिक्खा के रचयिता हरिषेण मेवाड़ में स्थित चित्रकूट (चित्तौड़) के निवासी थे। बाद में वे व्यापार निमित्त अचलपुर पहुंच गये जहां उन्होंने वि.सं. 1044 में धम्मपरिक्खा की रचना की। इसके 26 वर्ष बाद अमितगति (द्वितीय) की धर्मपरीक्षा वि.सं. 1070 में पूर्ण हुई । अमितगति मालवा के निवासी रहे हैं। पं. विश्वेश्वरनाथ ने उनको वाक्पतिराज मुंज की सभा के एक रत्न के रूप में प्रतिष्ठित किया है । 'सुभाषितरत्नसंदोह' ग्रन्थ की समाप्ति मुंज के ही राजकाल में वि.सं. 1050 में हुई। इन दोनों ग्रन्थों के अतिरिक्त कवि के निम्न ग्रन्थ भी उपलब्ध हैंउपासकाचार, पंचसंग्रह, आराधना, भावना-द्वात्रिंशतिका, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सार्द्धद्वयद्वीपप्रज्ञप्ति और व्याख्या प्रज्ञप्ति। हरिषेण की 'धम्मपरिक्खा' अपभ्रंश शैली में ग्यारह सन्धियों में पूर्ण हुई । इसमें कुल 238 कडवक हैं जो भिन्न-भिन्न अपभ्रंश शैली में लिखे गये हैं। मेवाड़ और मालवा में कोई विशेष दूरी नहीं है। दोनों समकालीन भी हैं। हरिषेण की धम्मपरिक्खा अमितगति की धर्मपरीक्षा से पहले लिखी गई। अतः अधिक सम्भावना यह है कि अमितगति के सामने हरिषेण की धम्मपरिक्खा रही होगी। हरिषेण की धम्मपरिक्खा विवरणात्मक अधिक है जबकि अमितगति एक कुशल कवि के रूप में प्रालंकारिक शैली में प्रत्येक तत्त्व का वर्णन करते हैं। हरिषेण ने सप्तम सन्धि में लोक-स्वरूप को तथा अष्टम सन्धि में जैन परम्परागत रामकथा को कुछ विस्तार से लिखा है। जबकि अमितगति ने कुछेक श्लोकों में ही उसे निपटा दिया है। हरिषेण ने अन्तिम सन्धि में रात्रिभोजन-कथा का विस्तार किया है पर अमितगति उसको सिद्धान्त रूप में उल्लिखित कर आगे बढ़ गये हैं । इसी तरह अमितगति ने जैनसिद्धान्त, नीतिशास्त्र, प्रकृत्ति-चित्रण आदि को जिस आकर्षक और कथात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है वह हरिषेण नहीं कर सके। हरिषेण का सन्धि-विभाजन अमितमति के अध्यायविभाजन से अधिक युक्तिसंगत है। इन विशेषताओं और विभिन्नताओं के बावजूद लगता है हरिषेण की धम्मपरिक्खा अमितगति की धर्मपरीक्षा का आधारभूत ग्रन्थ रहा है । विषयगत तुलना-अमितगति की धर्मपरीक्षा और हरिषेण की धम्मपरिक्खा के तुलनात्मक अध्ययन से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि अमितगति ने हरिषेण की धम्मपरिक्खा को सामने रखकर अपनी काव्य-प्रतिमा से उसे भलीभांति संवारा और मात्र दो माह में इतने बड़े काव्य-ग्रन्थ की रचना कर दी (धर्मपरीक्षा 20.90)। इन दोनों ग्रन्थों की विषयगत तुलना से भी यह तथ्य पुष्ट होता है

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