Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 70
________________ 60 ] षोडश परिच्छेद विषय रामचन्द्र का लंका प्रवेश और उसकी समीक्षा अमितगति ने इसे बिल्कुल छोड़ दिया है । समीक्षात्मक समापन तथा विट्ठखादन कथा और उसकी समीक्षा दधिमुख और जरासंघ कथा और उसकी समीक्षा यहाँ यह वर्णन नहीं है । वैदिक पुराणों की समीक्षा तथा बलि और रावरण का प्रसंग धर्म का महत्व सप्तदशम् परिच्छेद इस परिच्छेद में वेदों की धर्मपरीक्षा (अमितगति) 15.95-98 16.1-21 16.22-57 16.58-84 16.85-93 16.94-100 16.101-104 अपौरुषेयता, जातिवाद, स्नानवाद, भूतत्ववाद, अकर्मवाद, सृष्टिकर्तृत्व श्रादि का खण्डन है और आत्मा का अस्तित्व, कर्मवाद आदि की सिद्धि है । 17.1-100 प्रष्टादशम् परिच्छेद चौदह कुलकरों में ऋषभदेव का 18.1-84 वर्णन [ जैनविद्या- 13 धम्मपरिवखा (हरिषेण) 8.10-11 यहाँ समीक्षा अधिक विस्तृत है। 8.12-22 यहाँ विद्याधर, राक्षस और वानरवंश की उत्पत्तिकथा वरिणत है । 9. 1-5 यहाँ समीक्षा विस्तृत है । 9.6-10 9 13 देवशास्त्र गुरु का वर्णन 9 14-17 15.18-25 यहाँ धर्म का महत्व विस्तार से किया है । हरिषेण ने इसे छोड़ दिया है । 10.1-10

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