Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ [ जैन विद्या- 13 शरीर के भीतरी एवं बाह्य अंग- उपांगों पर पवित्र मन्त्रों, अक्षर रूप पदों का अवलम्बन लेकर ध्याता द्वारा यथाविधि की जानेवाली क्रिया को अन्क नयों के जानकार सिद्धान्तवेत्ता योगीश्वरों ने 'पदस्थ ध्यान' कहा है । अर्थात् वीतराग सर्वज्ञ ध्येय-रूप किंवा प्रलम्बन रूप जिन पवित्र मन्त्रों के अक्षर-रूप पद, वर्ण, बीजाक्षर तथा पीण्डाक्षर आदि की विधिवत् वा विशिष्ट प्रक्रिया के अपनाने को पूर्वाचार्यों ने 'पदस्थ ध्यान' कहा है । पदों या वर्णों के आलम्बन-रूप शरीर के विभिन्न अपेक्षित अंग- उपांगों पर ध्यानक्रिया का निर्देश प्राप्त होता है । उन शरीर के अवयवों किंवा अग-उपांगों के सम्बन्ध में मेरी ऐसी मान्यता है कि वे समस्त चौवन प्रमुख सुसुप्त शक्तिकेन्द्र हैं जिन्हें पूर्वाचार्यों द्वारा निर्देशित अक्षर या पदों के आलम्बन-रूप बीजमन्त्रों के द्वारा जागृत किया जाता है । अंग उपांगों पर मन्त्रों के ध्यान से एक रासायनिक प्रक्रिया होती है, जिससे वहाँ के शक्तिकेन्द्र. जागृत होकर सक्रिय हो जाते हैं । इस प्रकार क्रम-क्रम से शरीर के समस्त प्रसुप्त शक्तिकेन्द्रों को अपेक्षित मन्त्रों द्वारा, वर्गों द्वारा जागृत किया जाता है । 22] आत्मस्वरूप की उपलब्धि हेतु उन प्रसुप्त ऊर्जा केन्द्रों को जागृत करने के लिए पूर्वाचार्यों ने 'पदस्थ ध्यान' सोपान के अन्तर्गत अनेक बीजमन्त्रों का अनेकानेक ग्रन्थों में उल्लेख किया है । यहाँ विषय के सन्दर्भ में अमितगति प्राचार्य द्वारा प्रणीत श्रावकाचार में उपलब्ध बीजमन्त्रों पर संक्षिप्त विचार करेंगे । अमितगति श्रावकाचार में पदस्थ ध्यान को ध्यानेवाले साधक मनीषी को पंच-नमस्कार आदि जितने भी परमेष्ठी वाचक मन्त्र पद हैं उन्हें निश्चय से चिन्तन वा ध्यान करने का निर्देश दिया है। पंच परमेष्ठी वाचक मन्त्रों या बीजमन्त्रों का विशाल भण्डार है । उस विशाल भण्डार में से अमितगति श्राचार्य ने सर्व सामान्य के उपयोगार्थं कुछ प्रमुख मन्त्र पदों का अपने द्वारा प्रणीत श्रावकाचार में निम्न प्रकार उल्लेख किया है अन्य आचार्यों की तरह श्रमितगति आचार्य ने भी समस्त मन्त्रों के सार रूप 'अहं' पद को पापों के नाश हेतु ध्याता को ध्याने का निर्देश दिया है। इसी क्रम में अहं मन्त्र के ॐ ह्रीं बीजमन्त्रों के अवगुंठन के द्वारा निर्मित किन्तु शरीर के किस केन्द्र पर इस मन्त्र राज का ध्यान किया जाए, इस सम्बन्ध में उनका कोई निर्देश प्राप्त नहीं होता । "ॐ ह्रीं श्रीं नमः " मन्त्र ध्यान के सम्बन्ध में अमितगति ने बताया है कि आठ पत्रवाले कमल "ॐ ह्रीं श्रीं" मन्त्र का ध्यान करना चाहिए, यह मन्त्र सर्व पापों का नाश करनेवाला, समस्त ज्ञान साम्राज्य देने में कुशल, निरुपम सुख देनेवाला और समस्त मन्त्रों में चूड़ामणि समान है। 7

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102