Book Title: Jain Vidya 13
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ जनविद्या-13 ] 15 प्राचार्य अमितगति के पूर्व की दो कृतियां और मिलती हैं। एक जयरामकृत धूर्ताख्यान और हरिषेण की धर्मपरीक्षा। इनमें कुछ कथानक प्रायः समान से हैं, जैसे-हाथीकमण्डलु की उपकथा तथा विच्छिन्न सिर की उपकथा इत्यादि । इनके अतिरिक्त यत्र तत्र सम नरूप से पौराणिक कथाएं दृष्टिगोचर होती हैं, जैसे-इन्द्र और अहिल्या की कथा, अग्नि-भक्षण करती हुई यमपत्नी की कथा और ब्रह्मा तिलोत्तमा की उपकथा । किन्तु इनकी पुष्टि में साधारण अप्रामाणिक कथाएं समानरूप से नहीं पाई जातीं। इतना होने पर भी अमितगति की धर्मपरीक्षा और हरिषेण की धर्मपरीक्षा दोनों ही रुचिकर मौर शिक्षाप्रद, भारतीय साहित्य के सुन्दर नमूने हैं। हरिषेण की धर्मपरीक्षा का पद्य निम्न प्रकार है अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गो नैव च नैव च । तस्मात् पुत्रमुखं दृष्टा पश्चात् भवति भिक्षुकः ॥ माचार्य अमितगति का पद्य निम्न प्रकार है अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गों न च तपो यतः । ततः पुत्रमुखं दृष्ट्वा श्रेयसे क्रियते तपः ॥ हरिषेण कृत-- नष्टे मृते प्रवजिते क्लीवे च पतिते पतौ । पंचस्वापत्सु नारीणां पतिरन्यों विधीयते ॥ ममितगति पत्यौ प्रवजिते क्लीवे प्रगष्टे पतिते मृते । पंचस्वापत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते ॥ इस प्रकार हरिषेण कृत धर्मपरीक्षा और अमितगति कृत धर्मपरीक्षा में अनेक स्थानों पर साम्य है। प्राचार्यदेव ने प्रस्तुत ग्रन्थ धर्मपरीक्षा में अनेक दृष्टान्त देकर मिथ्यादृष्टि पवनवेग और सम्यग्दृष्टि मनोबेग इन दो मित्रों के माध्यम से लोक में प्रसिद्ध धार्मिक क्षेत्र की झूठी मान्यताओं पर कुठाराघात किया है। और पवनधेग के मिथ्यात्व को दूर करने का प्रयत्न किया है सबसे प्रथम मधु-बिन्दव की कथा से प्रारम्भ करके संसार के सुख और दुःख का माप बतलाया है। संसार का सुख एक मधु की बून्द की समान और दुःख चतुर्गति परिभ्रमण

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102