Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 9
________________ २८ ४ असर ३० १० देखाता असुर दिखाता गई द्वपायन ^, नामकेंसे १८ सापित ,, १ पीप्पलाद , १२ करण । १८ पीपलके ३५ १ आइ , ४ अपणे ३ उप्तत्ति ११ अवठ ३७ ४ पिहिता श्रव" १८ मुनिका " , जीसका ३८ ६ प्रव्रज्जा ३९ १ .आइ. ४० २ ककुदाचार्य ४१ १५ सौ ,' १७ हू आपीछे ४१ १८. ईनाकी " १९० सरिषी ४२ १३ श्री महावीरके । ४३ १८ उपसर्ग हर द्वैपायन नामसे शापित पिप्पलाद करने पिप्पलके आई अपने उत्पत्ति औवट पिहिताश्रवमुनिका जिसका प्रव्रज्या आई कक्कसरि सो । हुआ पीछे इनोंकी सरिखी श्रीमहावीरके उपसर्गहर

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