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(२०) . . दीया? तब पर्वतने कहाकि, तुमने जो अर्थ करा हे, सो अर्थ गुरुजीने नहीं कहाथा, किंतु जो अर्थ मैने करा है, सो अर्थ गुरुजीने कहाथा. तथा निघंटुमेंभी, अजा नाम बकरीका ही लिखाहै. तब मैनें (नारदने) पर्वतकों कहाकि, शब्दोंका अर्थ दो तरका होता है, एक मुख्यार्थ, और दूसरा गोणार्थ. यहां श्री गुरुने गोणार्थ कराया. गुरु धर्मो पदेष्टाका वचन, और यथार्थ श्रुतिका अर्थ, दोनोंकों अन्यथा करके हे मित्र ? तुं महा पाप उपार्जन मत कर. तम फेर पर्वतने कहाकि अजा शब्दका अर्थ श्री गुरुजीने मेपका करा है, निघंटुमें भी जैसेही अर्थ है, इनको उल्लंघन करके तुं अधर्म उपार्जन करता है, इस वास्ते वसुराजा आपणा सहाध्यायी है, तिसकों मध्यस्थ करके इस अर्थका निर्णय करो, और जो जूग होवे,तिसकीजीव्हा च्छेद करणी,जैसी प्रतिज्ञा कही. तब मैनेंभी पर्वतका कहना मान लीया, क्योंकि सांचकों क्या आंच है? तव पर्वतकी माताने पर्वतको छाना कहाकि हे पुत्र! तुं जैसा जूग कदाग्रह
मत कर. क्योंकि मैनेंभी इस श्रुतिका अर्थ तेरे पि, नामें तीन वर्षका धान्यही सुनाहे. इस वास्ते मैंने