Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ ( ५० ) [३४] (११) श्री आर्य इंद्र दिन्नसूर, कल्पसूत्रपट्टाव ल्या दौ. (३५) (१२) श्री आर्य दिन्नसूरि. कल्पसूत्रपट्टावल्या दो ( ३६ ) (१३) श्री आर्यसिंहगिरि. अ - आर्यसिंहगिरिका शिष्य ( १ ) स्थविरंधन गिरि ( २ ) स्थविरआर्यवज्रस्वामी, तिनोंसें वयरी शाखा निकली. (३) स्थविर आर्य समित, तिनसें ब्रह्मदीपिका शाखा निकली. (४) स्थविर अरिहदिन्नः (५) स्थविर आर्य शांति श्रेणिक, तिनसें उच्चनागरी शाखा निकली. आर्य शांतिश्रेणिकके चार शिष्य. (१) स्थविर आर्य श्रेणिक, तिससे आर्यश्रेणिक शा खा. निकली. (२) स्थविर आर्यतापस, तिससे आर्य तापसी शाखा. (३) स्थविर आर्य कुबेर, तिससे आर्य कुवेरी शाखा. (४) स्थविरं आर्य ऋषिपालित, ति ससें आर्य ऋपिपालित शाखा. कल्पसूत्रपट्टावल्यादौः व-श्रीवरात, ४५३, वर्षे गर्छभिल्ल राजाका उच्छेदक दूसरा कालिकाचार्य: श्रीवीरात् ४५३, वर्षे भृगुकच्छ

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93