Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 68
________________ ( ५८ ). (४७) (२४) श्री देवानंदसूरि. श्री वीरात्, ८४५, विक्रमात, ३७५, वर्षपीछे वल्लभी नगरीकाभंग. किसीस्थानमें विक्रमात् ४४० वर्षे वल्लभीभंग लिखा है. अ - वल्लभीके भंगमें श्री गंधर्व वादिवेताल शांतिसूरिने संघकी रक्षा करी. " (४८) (२५) श्री विक्रमसूरि, श्री वीरात्, ८८२. (४९) (२६) श्री नरसिंह सूरि. (५०) (२७) श्री समुद्रसूरि. अ - श्री वीरात्, ९९३, वर्षपीछे श्री कालिकाचार्यने पंचमीसें चौथकी संवत्सरीकरी. यहकथन, श्री निशी - थचूर्णि, व्यवहारसूत्र, मूलश्रुद्धि प्रकरणादि ग्रंथों में है. व - श्री वीरात, १०००, वर्षे सत्यमित्राचार्य के साथ सर्व पूर्वव्यवच्छेद हुए. ( ५१ ) (२८) श्री सानदेवसरि

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