Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ (६८) व्याकरणादिके सबबसे यथार्थ शास्त्रोंका अर्थ . मालुम होताहै. जब यथार्थ मालुम होया, कि तत्काल उनोंका मत जूठा सिध्ध होजानाहै. इसवास्ते पढना ही बंद करदीया है, कि जिससें अपने माने स्वकपोल कल्पित मत को हानी नहोवे तथा यहलोक, ३१, इकतीश शास्त्रेतो लंपकवा लेही मानते है, परंतु व्यवहारशास्त्र वत्तीसमा ज्यादा मानने लगे, तथा आवश्यक सूत्रज़ो असलीथा, सो लौंकेने प्रतिमा के सबसे मानना छोडदीया, और स्वकपोल कल्पित नवा खडा करलीया. इन ढुंढकोंने दोनोंही छोडके, अपने मनमाने अडंगे मारके नवाही खडाकर लीया. येह ढुंढीयेभी प्रतिमा, और प्रतिमाका पूजना ( मूर्ति पूजन) नही मानते इनोंका मत जैन शास्त्रोंसें विपरति है. लोकोंमें यह लोक जैनी कहाते है। परंतु वास्तवीको जैनी नहीं है. इन ढुंढीयांके, २२, वाईस फांटे निकले है, जो कि बाइस टोलेके नामसें प्रसिध्ध है, सो वाइस टोलें नीचे लिखे जाते है........

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93