Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 77
________________ (६७) जराती लौंका कहतेहै. तिनमेंसेंभी उतराधी विगेरे लैांके फिर प्रतिमाकों मानने लगगये, और जिनका मुहबंधे हुंढकोंके साथ मेल रहा, उनाने प्रतिमाका मानना नहीं कार करा. व-लंपक मतमेंसें संवत, १७०९, में सुरतके वासी वोहरा वीरजीकी बेटी छलांबाईकी गोदी लीये बेटे लवजी नामकने, लंपक मतकाजो . उसका गुरुथा, उसमें कई बातें करके, अ पने आप निकलके, साथ औरांनुं लेके, मु. हुपरकपडा बांधके, अलगमत निकाला जि... स मतकों लोग “ ढुंढीये" कहतेहै. ईन ई. ढीयोंका मत जबसें निकलाहै, तबसें आज पर्यंत इनके मतमें कोई भी विवान न. ही हुआहै. कयोंकी, यहलोक कहते है, कि व्याकरण, कोश, काव्य, छंदः, अलंकार, साहित्य, तर्कशासादि पढनेसें बुधि मारी जातीहै. असलीमें इनोंका व्याकरणा . शास्त्र नही पढनेका यह तात्पर्य है, कि

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