Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 82
________________ ( ७२ ) , तककी पट्टावली नीचे लिखते है.... . -, (१) श्री विजयसिंह सूरि, (२) श्री सत्यविजय गणि, तथा श्रीयशोविजयोपाध्याय. (३) श्री सत्यविजय गणिका शिष्य श्री कर्पर विजय गणि. (४) श्री क्षमाविजय गणि. (५) श्री जिनविजय गणि. [६] श्री. उत्तम विजय गणिः (७) श्री पन विजय गणि. (८): श्री रूपः विजय गणि. (९) श्री कीर्ति विजय गणि. (१०) श्री कस्तूर विजय गणि. (११) श्री मणि विजय गणि. (१२) श्री बुद्धि विजयजी महाराज. इनोंके लघुशिष्य श्री आत्मा रामजीने यह जैन मत वृक्ष बनाया. श्री आत्मारामजीने संवत्, १९१०, में मृगसीर शुदि, ५, के रोज़ ढुंढक मतकी दीक्षा लीनी. संवत्, १९३२, में श्री अहमदावाद जाके श्री बुद्धि विजयजी महाराजजीके पास सनातन जैनधर्म, जो कि श्री महावीर स्वामीसें लेके आज पर्यंत अविच्छिन्नपणे चलता है, सो अंगीकार करा. और मनः कल्पित असत्य ढुंदक मतका त्यागन, करा. साथमें कितनेही साधुओंकों, तथा हजारों श्रावक

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