Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 66
________________ ( ५६. र्णाटक देशमें विद्यमान है: असा सुगते है. तिन य थोमेंसें नेमिचंद्रने चामुड राजाके पढने वास्ते गों मटसार रचा. धवल जयधवल, महाधवल, इन तीनों से पहिला शास्त्र दिगंबरीने करा नहीं है. पीछे दि गंबरोमें चार शाखा हुइ. नंदी, १, सेन, २, देवा, ३, और सिंह. ४. पीछे चार संघ हूये. काष्टासंघ, १, मः लसंघ, २, माथुरसंघ, ३, और गोप्यसंघ. ४. पीछे वीशपंथी, तेरापंथी, गुमानपंथी, तोतापंथी आदि फांटे हुये. तोतापंथी मंदिरमें प्रतिमाके ठिकाने पुस्तक पूजते है. प्रथमतो शिवभूतिने नग्नपंथ काढा फेर स्त्रीकों मोक्ष नही, केवलीकों कवल आहार नहीं इत्यादि करतें करतें [८४] बातोंका फेर कहने लग. गये. इनका खंडन बहोत विस्तार सहित स्यादाद रत्नाकरावतारिका, वादीवेताल शांतिसूरिकृत उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति आदि ग्रंथोमें है. अब आज कालतो तेरापंथीओंने बहु तही का पोल कल्पना खडी करी है, जोकि दिगंबर मतक। प्राचीन, और नवीन ग्रंथोंके मिलानसें मल्लम होता है। ___ * संक्षेपमावतो खंडन श्री छत्व निर्णय प्रसादमें ग्रंथकर्ता ने लिखा है... ... ... . ' ...

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