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(१५) श्री वज्रसेनसूरि श्री वीरात्, ३२०४वर्षस्व । गे. इनके समय तीसरा बारां वर्षी काल पडा, जोकि । श्री वज्रस्वामीके अंत समयमें विद्यमान था. एका अ-श्री वीरात्, ५४८, वर्षे श्री गुप्ताचार्य त्रैराशिकके। जीतनेवाले. श्री वीरात्, ५५३, भद्रगुप्ताचार्य. श्री वीरात्, ५२५, श्री शत्रुज्य तीर्थोच्छेद. श्री वीरात्, ५७०, जावडशाहने शत्रुज्य तीर्थका उ. द्धार कराया. श्री वीरात्, ५९७, श्री आर्य रक्षितसूरि.... श्री वीरात्, ६१६, छसों सोलां दुर्बलिका पुष्पाचार्य." श्री वीरात, ५९५, वर्षे कोरंटन नगरमें तथा सत्यपुं- । रमें नाहडमंत्रीके बनाये ज़िनमंदिरमें, श्री जझक' सूरिने,श्रीमहावीर स्वामिकी प्रतिमाकी प्रतिष्टा करी..
यह कथन पट्रावली आदि ग्रंथोमें है. ब-श्री वज्रसेन सूरिके चार शिष्य हुए. (१) श्री चंद्र
सूरि, तिनसें चांद्रकुल निकला. (२) श्री नागेंद्रसूरि, तिनसें नागेंद्रकुल निकला: (३) श्री निवृतसूरिति । नसें निवृतकुल निकला.इस निवृत कुलमें विक्रमात ।