Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 73
________________ ( ६३ ) पूर्णमासीके रोज करनी. इस कालमां यह मतप्रायः लुप्त हो गया है, नाम मात्र रहा है. पौर्णिमीय मतसें निकलेके नरसिंह उपाध्यायनें संवत, १२१३, मतांतरसें १२१४, तथा १२३३, में अंचलमत निकाला. . .. [ ३] [१०] श्री अजितदेवसूरि. दिगंबरजेता. इनोंने संवत्, १२०४, में फलवधि ग्राममें चैत्यबिंबकी प्रति ठा करी; सो तीर्थ अद्यापि पर्यंत विद्यमान है. तथा 7 आरासणमें श्री नेमिनाथकी प्रतिष्ठा करी. तथा -८४०००, चौराशीहजार श्लोक प्रमाण स्यादाद र नाकरनामा ग्रंथ बनाया. इनोंका, १२२०, में स्वर्ग..वास हूआ. अ-श्री अजितदेवसूरिके समयमें श्री देवचंद्रसूरिके - शिष्य, साढेतीनकोड ३५००००००, श्लोकोंके कर्ता, - कलिकालमें सर्वज्ञविरुद धारक, पाटणके राजा कु- मारपाल प्रतिबोधक, श्री हेमचंद्रसूरि हुआ. इनोंका जन्म विक्रम संवत्, ११४५, दीक्षा संवत्, ११५०, सूरिपद, ११६६, और, १२२९, में स्वर्ग. इनोंका वृ- त्तांत प्रबंधचिंतामणि, कुमारपाल चरित्रादि ग्रंथोमें है. ब-विक्रम संवत् ; १२०४, में खरतरगच्छ नाम पडा.

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