Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 72
________________ ( ६२ ) श्री जिनचंद्रसूरि. (९) श्री जिनपतिमूरि. (१०) श्री जिनेश्वरसूरि . ( ११ ) श्री जिनप्रबोधसूरि. (१२) श्री जिनचंद्रसूरि. ( १३ ) श्री जिनकुशलसूरि. (१४) श्री जिनप्रभसूरि. (१५) श्री जिनलब्धिसूरि. (१६) श्री जिनचंद्रसूरि. (१७) श्री जिनोदयसूरि. (१८). श्री जिनराजसूरि. (१९) श्री जिनभद्रसूरि. (२०) श्री जिनचंद्रसूरि. (२१) श्री जिनसमुद्रसूरि. (२२) श्री जिनहंस सूरि. (२३) श्री जिनमाणिक्य सूरि. (२४) श्री जिनचंद्रसूरि. (२५) श्री जिनसिंह सूरि. (२६). श्री जिनराजसूरि. (२७) श्री जिनरत्न सूरि. ( २८ ) श्री जिनचंद्रसूरि. (२९) श्री जिन सौख्यसूरि. (३०). श्री जिनभक्तिसूरि. (३२) श्री जिनलाभसार. (३३) श्री जिनहर्पसूरि. (३४) (६२) ( ३९ ) श्री मुनिचंद्रसूरि इनोंने धर्म बिंदु, योग बिंदु, उपदेशपद आदि ग्रंथोकी टीका करी तथा अपने गुरुभाइ चंद्रपभकों समजाने के वास्ते पाक्षिक सप्ततिका करी. अ - संवत्, ११५९, में श्री मुनिचंद्रसूरिके वडे गुरुभाइचंद्रभने पौर्णिमीयक मत निकला. अर्थात् पाक्षिक

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