Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 61
________________ ( ५१ ) (भडौच) में विद्याचक्रवर्ति श्रीआर्यखपुटाचार्य. __श्रीवीरात ४६४-४६७ वर्षे आर्यभंगुआचार्य, वृद्धवादी, पादलिप्तसूरि, तथा विक्रमादित्य प्रतिबोधक श्री सिद्धसेन दिवाकर. श्रीवीरात्, ४७०. वर्षे विक्रमादित्य. यहवृत्तांत प्रबंध चिंतामणि, आ. वश्यक सूत्र, आचारप्रदीपादि ग्रंथोमें हैं. (३७) (१४) श्री वज्रस्वामी, श्री वीरात्, ५८४, वर्षे स्वर्ग. इनोंके समयमें, १०, मापूर्व, चौथा संहनन, और चौथा संस्थान, यहव्यच्छेद हो गये. तथा इनोंके समय दूसरा बारांवर्षी काल पडा. इनोंका वृत्तांत आ. वश्यक सूत्र, प्रभाविक चरित्र, परिशिष्ट पर्वन् , कल्पसूत्रादि ग्रंथोमें है. अ-श्रीवज्रस्वामीका शिष्य स्थविर वज्रसेन सूरि , इ. नोंसे नागली शाखा निकली. (१) दूसरा शिष्य आर्यपद्म स्थविर, इनोंसे आर्यपद्म शाखा निकली. (२) स्थविर आर्यस्थ, तिनसें आर्यज्यंत शाखा निकली. श्री आर्यस्थ, १, तिसका शिष्य आर्यसगिरि, २, तत्पट्टे आर्य फल्युमित्र, ३, आर्य धनगिरि, ४, आर्य शिवभूति, ५, आर्य भद्र, ६, आर्य नक्षत्र,

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