Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 53
________________ (४३ ) 'र्चाण. आवश्यक परिशिष्ट पर्वन आदि ग्रंथो में. [२७] (४) श्री प्रभव स्वामी, श्री वीरात् ७५, वर्षे स्व- र्ग. परिशिष्ट पर्वन् आदिमें. (२८) (५) श्री स्वयंभवसूरि, श्री वीरात् ९८ वर्षे स्वगे. इनोंने मनक नामा लघु शिष्यके वास्ते “ श्री दशवैकालिक” नामासूत्र पूर्वोमेंसें उद्धार करके बनाया. यह कथन श्री दशवैकालिक, परिशिष्ट पर्वन् 'आदि ग्रंथों में है. ( २९ ) (६) श्री यशोभद्रसूरि, श्री वीरात् १४८, वर्षे स्वगे. परिशिष्ट पर्वन आदिमें. __ (७) श्री संभूति विजयसूरि, तथा श्री भद्रबाहुसूरि.श्री भद्रबाहु स्वामी श्री वीरात् १७०, वर्षे स्वर्ग. इनोंने तीन छेद ग्रंथका उद्धार करा, तथा दशनियुक्तियां, भद्रबाहुसंहिता, उपसर्ग हरस्तोत्रादि पूर्वोमेंसें बनाये. आवश्यक सूत्र, परिशिष्ट पर्वन आदि ग्रंथोंमें यह कथन है.

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