Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 52
________________ ( ४२ ) सातमे पाट उपर जो स्नप्रभसूरि है, सो बडे ही प्रभाविक होये है. इनोंने अपने प्रतिबोधादि द्वारा सवालक्ष १२५०००, जैनी बनाये, और उपकेश [ओसवाल] वंश स्थापन करा. तथा इनोंके प्रतिष्टित दो मंदिर, श्री महावीर स्वामीके अब तक विद्यमान है. एक तो ओसा नगरीमें, जोकि जोधपुर के पास है, और दूसरा कोरंट नगरमें, जोकि एरणपुरके पास है. यह आचार्य श्री महावीरजीके पीछे ७० वर्षे हूए है. (२४) (१) श्री महावीर वर्द्धमान अरिहंत, तिनके ११ गणधर, और, नव ९ गच्छ. आवश्यकादौ. यहांसें जो पाटानुपाट लिखे जावेंगे, सो, श्री महावीरके शासनके होनेसें, इनोंका अंक श्री महावीरजीसें फिराया गया है. . (२५) (२) श्रीसुधर्मा स्वामी पांचमागणधर, अमि वैशायन गोत्री, श्री वीरात् २०,वर्षेमोक्ष आवश्यकादी. (२६) - [३] श्री जंबू स्वामी, श्री वीरात् ६४, वर्षे नि

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