Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 55
________________ ( ४५ ) लभद्र स्वामी पीछे ऊपरले चार पूर्व, प्रथम वज्र ऋपभ संहनन, और प्रथम समचतुरस्र संस्थान, यह - व्यवच्छेद हो गये. इनोंके समय में नवमें नंदका राज्य था. और इनोंहीके समय में पाणिनी सूत्र कर्त्ता पाणिनी, वार्त्तिकका कर्त्ता वररुचि कात्यायन, और व्याडी, यहतीनो पंडित ब्राह्मण हुए. पाणिनीने इंद्र, चांद्र, जैनेंद्र, शाकटायनादि व्याकरणोंकी छाया ले के पाणिनी सूत्र अष्टाध्यायी रूप रचे. पीछे पतंजलिने चंद्रगुप्त राजाके राज्यमें पाणिनी सूत्रो परिभाष्य रचा. यह कथन परिशिष्ट पर्वन, कौमुदी सरलाटीका, कथासरित्सागर, आवश्यक सूत्र, और इतिहास तिमिरं नाशकादिमें है. (३२) (९) श्री आर्य महागिरि, और श्री आर्य सुह स्ति आचार्य. आर्य महागिरि, श्री वीरात् २४५, वर्षे स्वर्ग. इनका शिष्य बहुल, और बलिस्सह. बलिसहका शिष्य तत्वार्थ सूत्रादि ५००, ग्रंथ कर्त्ता श्री उमास्वातिवाचक तिनका शिष्य श्री प्रज्ञापना ( पन्नवणा) सूत्र कर्त्ता श्री श्यामाचार्य. " श्री आर्यसुहस्तिसूरि, श्री वीरात् २९१ वर्षे स्वर्ग

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