Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 56
________________ ( ४६ ) श्री आर्यसुहस्तिके समयमें संप्रति नामा जैन धर्मी राजा हुआ. तिसने सवालक्ष १२५०००, जिन मंदिर बनवाये. जीसमें निनानवे हजार, ९९०००, जीर्ण [पुराने] जिन मंदिरोंका उद्धार करवाया, और छवीश हजार, २६०००, नवीन जिन मंदिर बनवाये. तथा सोने, चांदी, पीत्तल, पाषाण प्रमुखकी सवा कोटि १२५०००००, जिन प्रतिमा बनवाइ. सातसो, ७००, दानशाला बनवाइ. यह कथन परिशिष्ट पर्वन् आदिमें है. अ-आर्य महागिरिक मूख्य आठ शिष्य तिनोंका नाम. स्थविर उत्तर, (१) स्थविर बहुल, और बलिस्सह, [२] बलिस्सहसें उत्तर बलिस्सह गच्छ, और तिसगच्छकी चार शाखा हूइ, तिसके नाम. कौशांबिका, १, सुप्तवर्तिका, २, कोटंबानी, ३, और चंद्रनागरी, ४, तीसरा स्थविरधनार्द्ध, [३] स्थविर श्री ऋद्धं, [४] स्थविर कौडिन्य, [५] स्थविरनाग, [६] स्थविरनाग मित्र, [७] और स्थविरपद् उल्लुकरोहगुप्त, [८]. इस रोहगुप्तनें द्रव्य, गुणादि षट् पदार्थ माननेवाला वैशेपिक मत निकाला. यह कथन श्री आवश्यक सूत्र, कल्पसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र. सम्यक्त्व सप्ततिका

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