Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 51
________________ ... (४१) ६३ श्री सिधसूरि ७२ श्री सिद्धसूरि वि१५६५ ६४. श्री कक्कसूरि७३ श्री कक्कसूरिवि१५९५ ६५ श्री देवगुप्तसूरि७४ श्री देवगुप्तसूरी वि० ६६ श्री सिध्धसूरि विक्र- १६३१ मात् १३३०७५श्री सिध्धसूरिवि१६५५ ६७ श्री कक्कसूरि गच्छ ७६ श्रीकक्कसूरि वि१६८९ प्रबंध ग्रंथ कावि१३७१७७ श्री देवगुप्तसूरि १७२७ ६८ श्री देवगुप्तसूरि ७८ श्री सिधसूरि १७६७ - ६९ श्री सिद्धसूरि विक्रमा-७९ श्री कक्कसूरि १७८७ त् १४७५ ० श्री देवगुप्तसूरि १८०७ ७० श्रीकक्कसूरिवि१४९८८१ श्री सिध्धसरि १८४७ ७१ श्री देवगुप्तसूीर वि० ८२ श्री कक्कसूरि १८९१ * * १५२८ इस समय लुपक ८३ श्री देवगुप्तसूरि । मत निकला ८४ श्री सिध्धसूरि छठे पाट उपर जो केशीस्वामी है, सौ आचार्य, श्री महावीर स्वामी अरिहंत, २४, चौवीशमे तीर्थ करके शासनकी प्रवृत्ति हू आपीछे, श्री वीरके शा सनमें गिने जाते है. ईनोंकी प्रवृत्ति क्रिया कलापा।। दि सर्व महावीरजीके शासनके साधुओं सरिपी, परं ९ कहनेमें श्री पार्श्वनाथ संतानीय आते है.

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