Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 43
________________ . । ३३, सूत्रमें जैनमतकी स्यांदाद सप्तअंगीका खंडन "लिखाहै, सो सूत्र यहहै. "नैकस्मिन्नसंभवात् ॥३३॥ इस लेखसें सिद्ध होताहै, कि जैनमत वेदव्याससेंभी प्रथम था. जे कर नहोता तो, वेदव्यास अपने । रचे सूत्रोमें खंडन किसका करते ?” व्यासंजिका जैमनि नामाशिष्य, मीमांसक शास्त्रका कर्ता, मीमांसक मतका मुख्य आचार्य गिना । जाता है. शेष उपनिषदों, और वेदांग, अन्य अन्य ऋषियोंने पीछेसें बनाये है. तथा व्यासजिका शिष्य वैश्यंपायन, तिसका , , शिष्य याज्ञवल्क्य, तिसकी अपने गुरु वैश्यंपायनसें, तथा अन्य ऋषियोंसें लडाइ हूई, तब याज्ञवल्क्यने यजुर्वेद वमन करा, अर्थात् त्यागदीना, और किसी सूर्यनामा ऋपिसे मिलके नवीन यजुर्वेद रचा, तिसका नाम शुक्ल यजुर्वेद रखा. याज्ञवल्क्यके पक्षमें बहुत ब्राह्मण हो गये, तिनोंने मिलके पहिले । यजुर्वेदका नाम “कृष्ण यजुर्वेद" अर्थात् अंधकाररूप यजुर्वेद रख्खा, और तिसको सापित वेद ** वेदव्यासके करे खंडनका खंडन, और सप्तरंगीका स्वरूप तथा युक्तिद्वारा मंडने, तत्त्वनिर्णय प्रासादये है. न

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