Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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म-श्री पार्श्वनाथजीके बडे गणधर श्री शुभदत्तजी, तिनके पाटपर. तिनका शिष्य हरिदत्तजी, तिसके पाटपर आर्य समुद्र, तिसके पाटपर स्वयंप्रभसूरि, तिस स्वयंप्रभसूरिके साधुओंमें एक पिहिता श्रवनामा साधुथा, तिसका बुद्धकीर्तिनामा शिष्यथा, तिसने बौद्ध मत उप्तन्न करा, तिसकी उप्तत्ति दर्श'नसार नामक ग्रंथमें जैसें लिखीहै.
सिरिपासणाहतित्थेसरउतीरेपलासणयरत्थे पिहि- . आसवस्ससीहे महायुद्धोबुद्ध कित्तिमुणी॥१॥तिमिपूरणासणेया अहिगयपव्वज्जावओपरमभट्टे रत्तंबरंधरित्तापवडियंतेणएयत्तं ॥२॥ मंसस्सनस्थिजीवो जहा. फलेदहियडुद्धसकराए तम्हातमुणित्ता भखंतोणात्थिपाविछो ॥३॥मज्जंणवज्जणिज्जंदव्वदवं जहजलंत
हएदंइतिलोएघोसित्तापव्वत्तियंसंघसावज्जं ॥ ४ ॥ : अण्णोकरेदिकम्मअण्णोतंभुंजदीदिसिद्धंतं परिक
प्पिऊणणूणवसिकिच्चाणिस्यमुववण्णो ॥५॥ ... भावार्थः-श्री पार्श्वनाथके तीर्थमें, सरयू नदीके
कांठे उपर पलास नामा नगरमें रहा हुआ पिहिता । श्रवनामा मूनिका शिष्य, बुद्धकीर्तिजीसका नामथा ... एकदा समय सरयू नदीमें बहुत पानीका पूर चढी

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