Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 27
________________ (१७) ✔ · गुरु महाराजने तो यह आज्ञा कीनी हैं, कि हे वत्स ! यह कुक्कड, तूं तहां मारी, जहां कोई देखता न होवे, तो यह कुक्कड देखता है, और में भी देखता हूं. खेचर देखते है, लोकपाल देखते है, जानी देखतें है, ऐसा तो जगतमें कोइभी स्थान नही जहां कोइभी देखता न होवे . इस वास्ते गुरुके कहने का यही तात्पर्य है, कि इस कुक्कडका वध नही करना. क्योंकि गुरु पूज्य तो सदा दयावान्, और हिंसासें पराङ्मुख है. निः केवल हमारी परीक्षा लेने वास्ते यह आदेश दीया है. ऐसा विचार करके विनाही मारे कुक्कडकों लेके मैं (नारद) गुरु के पास चला आया, और कुकुडके न मारने का सबब सर्व गुरुकों कहदीया, तब गुरुने मन में निश्चय करलीयाकि, यह नारदं, जैसे विवेकवालाहै, सो स्वर्ग जायगा. तब गुरुजीने मुजकों छातीसें लगाया, और बहुत साधुकार कहा. तथा वसु और पर्वतभी मेरेसें पीछे गुरुके पास आये, और गुरुकों कहते हुये, कि हम कुक्कडकों जैसी जगे मारके आये हैं कि जहां कोइभी देखता नहीथा. तब गुरुने कहा तुमतो देखतेथे, तथा खेचर देखतेथे, तबहे पापिष्टो ! तुमने कुक्कड क्यों मारे ? औसे कहकर गुरु

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