Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 25
________________ . . (१५) कि जो ब्राह्मण लोक कहते है, कि आगे राक्षस यज्ञ विद्वंस कर देतेथे, सो क्या जाने ? रावणादि जबरदस्त जैन धर्मी राजे पशुवध रूप यज्ञ करणा हुडा देतेथे, तबसेंही नाहगोंने पुराणादि शाखों में उन्न जबरदस्त राजाओंकों राक्षसोंके नामसें लिखा है ? तथा यहभी सुनने आया है, कि नारदजीनेभी, मायाके वश जैनगत धारके वेदोकी निंदा करीथी. तोक्या जाने ? इस पूर्वोक्त कथानकका यही तात्पर्य लोकोंने लिख लीया हो ? ब-रावणने नारदकों पूछाकि, जैसा पापकारी पशु वधात्मक यह यम कहांसें चला है, तब नारदजीने कहाकि-शुक्तिमती नदी के किनारे उपर ओक शुक्ति मतीनगरी है.तिसमें हरिवंशीय श्रीमुनिसुव्रत स्वामी तीर्थकरकी औलादमें जब कितनेक राजे व्यतीत हो गये, तब अभिचंद्र नामा राजा हुआ. तिस अभिचंद्र राजाका वसुनामा बेटा हूया. वो वसु महा बुद्धिमान, सत्यवादी, लोकोंमें प्रसिद्ध हुआ. उसी नगरीमें अक क्षीर कदंबक नामा उपाध्याय रहताथा. तिसके पर्वतनामा पुत्र था. उस क्षीरकदंबक उपाध्यायके पास राजाका बेटा वसु, (१) उपाध्यायका

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