Book Title: Jain Mat Vruksha Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 8
________________ (२) १७ ११ कुक्कुडके . कुकडके मारके गईकि , १८ मारके १९ १ गइकि १९ २० शिख लायाथा २० ७ धर्मो पदेष्टाका शिखलायाथा धर्मोपदेष्टाका च्छेद मेरेकों गुरुन्तीतरें २१ १६ परेकों १७ गुरूकीतरें गुरुजीने २३ १८ गुरू ४ गुरूजीने १३ गुरूवाख्य दिति ७ गुरुख्यिदिति इस २४ बनाइ तेरेंसे असुर बनाई तेरेसें असुर २५ १४ पुछा, कि कहा, कि पुछाकि कहाकि, दिती सुलासाका राजा ओमेसुं दिति सुलसाका राजाओमेंसं २६ १० गइ जिनोंसें जीनासे मधुपिंगलनामामेरा मधुपिंगलनामा मेरा वनाई वनाइ लक्षणहीन लक्षणहिनPage Navigation
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