Book Title: Jain Mat Vruksha Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 6
________________ बनायाहै, वो फायदा नही पहुंच शक्ताहै. इस वास्ते ग्रंथकर्तीकी आज्ञानुसार पढने वालेको सुगमता होनेके वास्ते, वृक्षकी ढब हटाकर, किताबकी ढवपर लिखा गयाहै, तोभी नामतो वोही रखाहै. क्योंकि, प्रयम “जैनमत वृक्ष" के नामसेंही प्रसिद्ध होचुकाहै. और अब इस किताबके साथभी, छोटासा वृक्ष, दिया गयाहै; जिसमें नंबर दिये है, उस नंबरका व्यान प-- ढनसें, पढने वालेको ठीक ठीक गता लग जाताहै. इस वास्ते सजन पुरुषोंको चाहिये कि, अथसें इति तक, इस ग्रंथको देखके, ग्रंथकर्ताके प्रयासको सफल करें. संवत्-१९४९ फाल्गुन शुक्ला दशमीहाल मुकाम गुरुका झंडीयाला जिल्ला अमृतसर देश पंजाब. .. मुनि-वल्लभ विजयने लिखा ग्रंथकर्ताकी आज्ञासें.Page Navigation
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