Book Title: Jain Mat Vruksha Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 5
________________ ॥ ॐ ॥ विदित होवे कि, यह जैनमत वृक्ष नामा ग्रंथ, ग्रंथकर्त्ताने किस मिहनत से बनाया है; सो मिहनत तो, असली वृक्षके समान, मुंबाइमें छपे हुए " जैन मत वृक्ष" से मालुम होती है. परंतु अपशोस है कि, वो जैसा कि लोकोपयोगी होने का ख्याल रखतेथे, नही हुआ. बडी भारी खराबी तो उसमें यह हुई है कि, वो वृक्ष लाल स्याही सें छपा है, जिससे कइ जगापर अक्षर साफ साफ खुले नही है; और कई जगा अक्षर .बिलकुल उडगए है. जिससे वांचने वालेको, ठीक ठीक मतलब नही मिलता है; दूसरी खराबी यह है कि, वांचने वाले को कभी किधर सुख करना पडता है, और कभी किधर, इस तकलीफसें भी लोक उस वृaat शोख देख नही शक्ते हैं. तीसरी खराबी यह है कि, जिसके वास्ते पुनरावृति करनेकी खास जरूरतथी. वो खराबी यह है कि, अतीव अशुद्ध छप गया है. बेशक सीसे में जडवाके नमुनेके वास्ते रखना कोई चाहे तो रख शक्ता है, और मकानको शोभाभी देशक्ता है; परंतु जिस फायदेके वास्ते ग्रंथकर्त्तानेPage Navigation
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