Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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थर, और, ११६, गच्छ. आवश्यकादौ.
श्री लुमतिनाथ अरिहंत, तिनके १००, गणधर, और, १००, गच्छ. आवश्यकादि सूत्रे.
श्री पन प्रभ अरिहंत, तिनके १०७, गणधर, और, १०७, गच्छ. आवश्यकादौ.
(७) श्री सुपार्श्वनाथ अरिहंत, तिनके ९५, गणधर, और, ९५, गच्छ. आवश्यकादौ.
श्री चंद्रप्रभ अरिहंत, तिनके ९३, गणधर, और, ९३, गच्छ. आवश्यकादौ.
श्री सुविधिनाथ पुष्पदंत अरिहंत, तिनके ८८, गणधर, और, ८८, गच्छ. यह कथन श्री आवश्यकादि सूत्रों में है. अ-श्री सुविधिनाथ पुष्पदंत अरिहंत के निर्वाण हुआं पीछे, कितनेक कालतक, जैनशासन, अर्थात् द्वादशांग गणिपिडग, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, और चारों आर्यवेद, और तिन के पठन पाठन

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