Book Title: Jain Mat Vruksha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 18
________________ (८) करनेवाले जैन ब्राह्मण, यह सर्वव्या इच्छेदलले गरे भारत वर्षमें जैन धर्मका नाम निशान भील रहा, तबतिन बाह्मणोंकी संतानची तिनकों लोकोंने कहा, कि हमकों धर्मोपदेश करो, तवतिन ब्राह्मणाभासोंने, अनेक तरेकी श्रुतियां स्थी. तिनमें, इंड, वरुण, पूषा, नक्त, अमि, वायु, अधिनौ, उषा, इत्यादि देवताओंकी उपासना करनी लोक उपदेश करा. और अनेकतरेके राजन वाजन करवाए. और कहने लगेकि, हमनें इसीतरें अपने वृद्धों के सुखसें सुना है. इस हेतुसे तिलश्लोकोंका नाम श्रुति रख्खा, क्यों किति स समय सत्य ज्ञानवाला, कोइ भीनहींथा, इस वास्ते जो तिनकों अच्छा लगा, सोइ अपना रक्षक देवमानके तिसकी स्तुति करी. और कन्या, गौ, भूमी, आदि दानके पात्र अपने आपकों ठहराये, और आप जगद्मुझसर्वोपरि विद्यावंत बन गये. और लोकोंमें, पूर्वोक्त अपनी रची श्रुतियोंकों, वेदके नामसें प्रचलित करते हूए. ऐसें सांप्रतिकालमें माने ब्राह्मणोंके वेदकी उत्पत्ति हूइ. पीछे अनेक तरेकी श्रुतियां रचते गये, और मनमाना स्वकपोल कल्पित व्यवहार चलाते गये और

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