Book Title: Jain Mat Vruksha Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 7
________________ . शुद्ध .. शुद्धिपत्र. पृष्ट लीटी. अशुद्ध १ २ श्री वीतरागायन मोस्तु श्री वीतरागाय नमोस्तु - ४ १५ नित्य प्रतिचार निसप्रतिचार सुना तेथे सुनातेथे उच्चार न उच्चारन ५ २० आ हिताय . आहितामय १२ आवश्य कादि आवश्यकादि १. सर्वव्य वच्छेद हो गये सर्व व्यवच्छेद होगये ८ २ भीन भी न ८ ११ कितिस कि तिस १७ हितेठ विया असंज हिते ठविया असंज , १८ काहि आतेहिं - काहिआ तोह २ धर्म काव्य धर्मकाव्य ७ ब्राह्मणा भासोंने ब्राह्मणाभासोंने मरुत ९ ब्राह्मणा भासोंके बाह्मणाभासोंके १० सौ निकोंकीतरे सौनिकोंकीतरे ११ ब्राह्मणा भास वाह्मणाभास , १३ मरूत मरुत . सुनातहां १६ २ विद्वंस १५ १० यूछाकि, १६ ५. परसस्पर ... १५ होवे? सुनाताहूं विध्वंस पूछा, कि, परस्पर होवे.Page Navigation
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